Book Title: Samyaktva Kaumudi
Author(s): Tulsiram Kavyatirth, Udaylal Kasliwal
Publisher: Hindi Jain Sahityik Prasarak Karayalay

View full book text
Previous | Next

Page 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir man सम्यक्त्व-कौमुदीलोंके दर्शनसे आज मेरे दोनों नेत्र सफल हुए; हे त्रैलोक्यतिलक, आज यह संसाररूपी समुद्र मुझे चुल्लूके समान जान पड़ता है । इसी तरह और अनेक प्रकारसे श्रीवर्धमान भगवान्की और श्रीगौतम स्वामीकी स्तुति कर वे मनुष्योंके कोठेमें बैठ गये । वहाँ उन्होंने भगवान्के उपदेशरूपी अमृतका पान किया। पीछे अवसर देखकर श्रेणिकने गौतमस्वामीसे निवेदन किया-हे स्वामिन्, आप सम्यक्त्वकौमुदी-कथाको कहिए । यह सुनकर गौतमस्वामी बोले___ जम्बूद्वीपके भरतक्षेत्रमें सौर नामका एक देश है । इस देशमें उत्तरमथुरा नामकी नगरी है । इस नगरीमें पद्मोदय नामका राजा था । यशोमति उसकी रानी और उदितोदय नामका उसका पुत्र था। मंत्रीका नाम संभिन्नमति था। मंत्रीकी सुप्रभा नामकी स्त्री तथा सुबुद्धि नामका पुत्र था । इसी नगरीमें अंजनगुटिका आदि विद्याओंमें प्रवीण रूपखुर नामका एक चोर रहता था। इसकी स्त्रीका नाम रूपखुरा था। इसके एक पुत्र था। उसका नाम सुवर्णखुर था। यहीं जिनदत्त नामका एक राजसेठ रहता था। सेठकी स्त्रीका नाम जिनमति और पुत्रका नाम अहंदास था । अहंदासकी आठ स्त्रियां थीं। उनके नाम थे-मित्रश्री, चन्दनश्री, विष्णुश्री, नागश्री, पद्मलता, कनकलता, विद्युल्लता और कुंदलता । इन आठोंका परस्परमें बड़ा प्रेम था । तथा ये दया, दान, और तपमें सदा लगी रहती थीं। For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 264