Book Title: Samaysaar Kalash Tika
Author(s): Mahendrasen Jaini
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ (११) है पर चिकनेपने के अभाव में घो को उपलब्धि नहीं अतः चिकनापना ही थी का सर्वस्व है और घी में गर्मी स्वयं से नहीं आई वरन् अग्निजन्य है। यहां दान्ति में मिट्टी के स्थान पर शरीर, चिकनेपने के स्थान में चैतन्यपना, गर्मी के स्थान में भावकमं व अग्नि के स्थान में द्रव्यकम है। मिट्टी और घी के समान शरीर व चतन्य मिलकर एक से भास रहे हैं पर हैं वे पृषक-पृथक् द्रव्य मोर गर्म घी के समान चैतन्य भी राग-द्वेष आदि भावकों से तप्तायमान हो रहा है पर ये सारे विकारो भाव हैं, चेतना के अपने नहीं, द्रव्यकर्म जन्य है, द्रव्य कर्म के उदय से आत्मा में हए हैं अत: पर ही हैं। चीज वहां दोनों हैं शान भी है कर्म भी और देखने वाला यह स्वयं है, इसे स्वयं ही चनाव करना है कि मैं अपने आपको ज्ञान रूप देखू या कर्म व उसके फल रूप । अपने को पर रूप देखना तो संसार, देखना-पढ़ना नहीं, सुनना नहीं, कहना नहीं, मात्र देखना। जोर देखने पर है और अपने को अपने रूपरेखना सो मोक्ष | अपने को अपने रूप देखना ही मोक्षस्वरूप है, मोक्ष का मार्ग है, सम्यग्दर्शन है, स्वानुभूति है। पर से हटना है, अपने में माना है अपने में आना है, पर से हटना है। जब तक ज्ञान मूछित अवस्था में है, मूछित अवस्था का तात्पर्य है कि जैसे मतवाला स्वयं को और अपने घर को नहीं जानता और किसी पर मे अपनापना मान लेता है वैसे ही यह भी किसी पर में शरीर में, पुण्य पाप के उदय में या शुभ अशुभ भाव में अपनापना, अपना मान लेता है-यह मैं और ये मेरा और मैं इनका कर्ता और अशुभ क्रिया व भाव को शुभ क्रिया व भाव में पलटने को ही ये अपना पुरुषार्थ समझता है, इसी को मोक्षमार्ग मान लेता है, कभी ज्ञान को जागृत करने का पुरुषार्थ किया नहीं। ज्ञान के जागृत होने का सम्बन्ध न तो शुभ अशुभ भावों से है न शुभ अशुभ क्रिया से है और न ही क्षायोपशमिक ज्ञान को अर्थात् पर्याय में ज्ञानशक्ति के उघाड़ को बढ़ाने से ही है। अतः सम्यग्दर्शन के लिए शुभ भावों का, शुभ क्रिया का व क्षायोपमिक ज्ञान को बढ़ाने का पुरुषार्थ मही नहीं है। ज्ञान को जागृत करने के लिए तो इसे भीतर में जानने वाले को पकड़ना होगा। शुभ अशुभ भावों व क्रिया में अपनापना न होकर उस जानने वाले में अपनापना, स्वामित्वपना, कर्तापना, एकरवपना आवे तो शुभ अशुभ भाव करने का मिथ्या अहंकार नष्ट हो और सम्यग्दर्शन की प्राप्ति हो। प्रत्येक व्यक्ति के प्रति समय तीन क्रिया हो रही हैं-शरीर की शुभ

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 ... 278