Book Title: Samaj Vyavastha ke Sutra Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 8
________________ मनःस्थिति और समाजवाद परिष्कार का स्वप्न भी चरितार्थ नहीं होगा। ___मनःस्थिति के परिष्कार का मुख्य सूत्र है-अध्यात्म, धर्म। मैं उस धर्म की चर्चा नहीं करता जो मनःस्थिति को बिगाड़ता है, मलिन और दूषित बनाता है। जिसमें जातीयता है, साम्प्रदायिक अभिनिवेश है, दूसरे के प्रति घृणा का भाव है, वह धर्म नहीं सम्प्रदाय है। धर्म और अध्यात्म वह है जहाँ मनःस्थिति को परिष्कृत करने का प्रयत्न है अभ्यास और साधना है। चित्त की निर्मलता, पवित्रता और शद्धि से अधिक कोई धर्म या अध्यात्म नहीं है। धर्म और अध्यात्म का अर्थ है-चेतना का परिष्कार। मन को समझना, मन का परिष्कार करना, मन को निर्मल बनाना-धर्म, अध्यात्म और प्रेक्षाध्यान का यही उद्देश्य है। चित्त इतना निर्मल बन जाए कि उसमें दूसरे के प्रति क्रूरता के भाव न रहें। वह करुणा से परिपूर्ण हो जाए। उसमें अप्रामाणिकता, अनैतिकता और बुराई का भाव न रहे। उसमें रहे केवल मंगल भावना, मैत्री भावना और करुणा. भावना। यह वस्तुस्थिति है। इसे कोई भी वाद अस्वीकार नहीं कर सकता। जो मनुष्य को तो स्वीकार करता है, पर उसकी पवित्र मनःस्थिति को अस्वीकार करता है, वह सचाई के साथ और स्वयं के साथ आँख-मिचौनी करता है। धर्म में भी जो विवाद है, वह छिलकों के साथ है, रस के साथ कोई विवाद नहीं है। अध्यात्म में कोई विवाद हो ही नहीं सकता। आचार्य हरिभद्र ने एक मार्मिक बात लिखी है-अध्यात्म साधक को चाहिए कि इन वाद-कुश्तियों को छोड़कर केवल अध्यात्म का अनुचिन्तन करे। जहाँ अध्यात्म की चेतना होती है, वहाँ सारे वाद समाप्त हो जाते हैं। वाद चलता है साम्प्रदायिकता के आधार पर। अध्यात्म आते ही वाद समाप्त हो जाता है। केवल संवादिता रह जाती है। न वाद, न प्रतिवाद, केवल संवाद रह जाता है। कछ बचता नहीं। आज इस वैज्ञानिक युग में धर्म की बहुत बड़ी आवश्यकता है। धर्म शब्द सम्पद्राय के साथ जुड़कर कुछ धुंधला-सा बन गया है। वह उतना उजला नहीं रहा, जितना हमारी धारणा में था। अध्यात्म में आज गरिमा है। अध्यात्म है-अपने भीतर जाना और मन को समझने का प्रयत्न करना। प्रेक्षाध्यान के साधकों के सामने एक प्रश्न रखता हूँ कि क्या उन्होंने अपने मन को समझा या नहीं ? यदि मन को ठीक समझ लेते हैं तो ध्यान स्वयं होने लग जाता है। यदि मन को ठीक नहीं समझ लेते तो ध्यान से जो उपलब्धि होनी चाहिए वह नहीं होगी। मन को, चित्त को और चेतना को समझना, पहली शर्त है ध्यान की। . एक वर्ष में दो अयन और छह ऋतुएँ होती हैं। दो अयन हैं-उत्तरायण और दक्षिणायन । हमारे मन के भी दो अयन और छह ऋतुएँ होती हैं। एक है अयन का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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