Book Title: Samaj Vyavastha ke Sutra Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 7
________________ समाज-व्यवस्था के सूत्र शिक्षाविद् और राजनैतिक विशारद परिस्थिति को सुधारने को प्राथमिकता दे रहे हैं। परिस्थिति को सुधारने के लिए आज दसों तन्त्र कार्यरत हैं, पर सुधार कहीं भी दृष्टिगोचर नहीं हो रहा है। कहीं न कहीं कमी अवश्य है। वह कमी यह है कि जव तक मनःस्थिति नहीं सुधरती तब तक परिस्थिति पूर्णरूपेण नहीं सुधर सकती। शासन के भय से कुछ सुधार होता है तो वह भी क्षणिक। स्थायी सुधार नहीं होता। एक आदमी होटल में ठहरा हुआ था। रात वीती। प्रातःकाल होटल के मालिक ने पूछा-रात कैसे वीती ? उसने कहा-'वहुत अच्छा रहा। यहाँ के मच्छर मुझे आकाश में उड़ा ले जाना चाहते थे, पर खाट के खटमल ने मुझे थामे रखा। अन्यथा न जाने अभी मैं कहाँ होता ?' मच्छर आकाश में ले जाना चाहते हैं और खटमल टाँग पकड़े हुए हैं। परिस्थिति भी कभी आकाशीय उड़ान भरती है और कभी टाँग पकड़ लेती है। परिस्थिति भी केकड़ानीति है। मछआरे केकड़ों को पकड़कर टोकरी में एकत्रित करते हैं, पर उन टोकरियों पर ढक्कन नहीं लगाते, क्योंकि वे जानते हैं कि मछलियाँ तो फदक-उछलकर पनः पानी में चली जा सकती हैं, पर केकड़ा यदि टोकरी से बाहर निकलने की कोशिश करता है तो दूसरा केकड़ा उसकी टाँग खींचकर उसे नीचे गिरा देता है। अतः ढक्कन देने की जरूरत नहीं है। परिस्थिति भी ऐसी ही है। यदि कोई व्यक्ति परिस्थिति का अतिक्रमण कर आगे बढ़ना चाहता है तो दूसरा व्यक्ति टॉग खींचते हुए कहेगा-कहाँ जा रहे हो ? हमारी पंक्ति में बैठे रहो। जबतक हम परिस्थिति पर निर्भर रहेंगे और मनःस्थिति पर ध्यान केन्द्रित नहीं करेंगे तो दीर्घकाल में भी सुधार की सम्भाव्यता नहीं होगी। मनःस्थिति सुधरे विना परिस्थिति सुधर जाए, यह न भूतं न भविष्यति। एक प्रश्न फिर उभर आता है कि पहले परिस्थिति को सुधारना अपेक्षित है अथवा मनःस्थिति को सुधारना अपेक्षित है ? एक आदमी अपना सारा सामान गाड़ी में लादकर जा रहा था। गाँव वालों ने पूछा-'कहाँ जा रहे हो ?' उसने कहा-'गाँव में गन्दगी बहुत है, इसलिए जंगल में जा रहा हूँ। वहाँ गन्दगी नहीं है।' गाँव वाले बोले-'भले आदमी ! गन्दगी को करने वाला आदमी ही तो है। वह जहाँ जाएगा गन्दगी करेगा। जंगल को तो साफ रहने दो।' परिस्थिति को जटिल या विषम बनाने वाला आदमी ही तो है। जब तक हम आदमी की मनःस्थिति के परिष्कार की ओर ध्यान नहीं देंगे तब तक परिस्थिति के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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