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रवीन्द्र-कथाकुञ्ज
mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm लज्जासे बहुत ही कातर है, इसलिए उसने बहुत बहुत निषेध कर दिया है कि मैं तुमसे उसकी चर्चा न करूँ । किन्तु अब ढक रखना व्यर्थ है। वह तुम्हारी ही पड़ोसिन है और १६ नंबरके मकानमें रहती है। .
यदि मेरा हृत्पिण्ड लोहेका बायलर होता तो इस धक्केसे तत्काल ही फट जाता । थोड़ी देरमें कुछ प्रकृतिस्थ होकर मैंने पूछा-विधवाविवाहको वह पसन्द करती है ? ।
नवीनने हँसकर कहा-इस समय तो करती है ! मैंने कहा- केवल कविता पढ़कर ही वह तुमपर मुग्ध हो गई ?
नवीनने कहा-क्यों, मेरी वे कविताएँ क्या कुछ कम प्रभावशालिनी थीं?
मैंने मन ही मन कहा-धिक ! परन्तु वह धिक्कार किसको ? उसे, या मुझे, या विधाताको ?
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