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दृष्टि-दान
१७. . . ... ..~~~~~~~~~~~ ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ मैं केवल जीविका-निर्वाह करनेके लिए डाक्टरी नहीं सीख रहा हूँ, बल्कि इसलिए सीख रहा हूँ कि इसके द्वारा मैं बहुतसे गरीबोंका उपकार भी कर सकूँगा । जो डाक्टर किसी दरिद्र मुमूर्षके या मरणासन्नके द्वारपर पहुंचकर बिना पेशगी फीस लिये नाड़ी नहीं देखना चाहते, उनका जिक्र आने पर घृणाके मारे मेरे स्वामीके मुँहले बात नहीं निकलती थी । पर मैं समझती हूँ कि अब वे दिन नहीं रह गये। अपने एक मात्र लड़केके प्राणों की रक्षाके लिए एक दरिद्र स्त्रीने आकर उनके पैर पकड़ लिये, पर वे उसकी उपेक्षा कर गये । अन्तमें मैंने उन्हें अपने सिरकी सौगन्द देकर भेजा, फिर भी उन्होंने मन लगाकर उसका काम नहीं किया । जब हम लोगोंके पास रुपया कम था, तब मैं अच्छी तरह जानती हूँ, अन्यायपूर्वक रुपया कमानेको मेरे स्वामी कैसी दृष्टिसे देखते थे। पर अब बैंकमें बहुतसे रुपए जमा हो गये थे। एक दिन किसी धनवानका नौकर श्राकर दो दिनों तक एकान्तमें गुप्त रूपसे उनसे बहुत-सी बातें कर गया । मैं यह तो नहीं जानती कि क्या क्या बातें हुई, पर जब उसके चले जानेके उपरान्त वे मेरे पास आये, तब उन्होंने बहुत ही प्रसन्नताके साथ भिन्न भिन्न अनेक विषयोंकी बहुत-सी बातें की। उस समय मैंने अपने अन्तःकरणकी स्पर्शशक्तिके द्वारा समझ लिया कि आज वे अपने ऊपर कालिमा पोतकर ही आये हैं।
आँखें खोनेसे पहले मैंने अन्तिम बार जिन स्वामीको देखा था, मेरे वे स्वामी अब कहाँ हैं ? जिन्होंने मेरी दोनों दृष्टिहीन आँखोंके मध्यमें चुम्बन अंकित करके मुझे एक दिन देवीके पदपर अभिषिक्त किया
था, मैं उनका क्या कर सकी ? काम क्रोध आदिमेंसे किसी शत्रुकी प्रबलता होनेपर किसी दिन अकस्मात् जिनका पतन होता है, वे हृदयके किसी दूसरे आवेगके कारण फिर ऊपर उठ सकते हैं ; परन्तु यह तो दिन