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दृष्टि-दान
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ठीक कहती हो । अच्छा तो अब हम तुम छिपकर सलाह करेंगे । क्यों अविनाश, ठीक है न ? पर बहू, फिर भी मैं तुमसे एक बात कहती हूँ । कुलीनकी लड़की की जितनी ही ज्यादा सौतिनें हों, उसके स्वामीका गौरव उतना ही अधिक बढ़ता है । हमारा लड़का यदि डाक्टरी न करके खाली ब्याह ही करता, तो उसे रोजगारकी चिंता ही न करनी पड़ती ! रोगी डाक्टर के हाथमें पड़ते ही मर जाता है और जब वह मर जाता है, तब फीस नहीं देता । परन्तु विधाता के शाप से कुलीनकी स्त्रीको मृत्यु ही नहीं श्राती और वह जितना ही अधिक जीती रहे, उसके स्वामीका उतना ही अधिक लाभ है ।
दो दिन बाद मेरे स्वामीने मेरे सामने ही अपनी बुझसे पूछाबुजी, क्या तुम भले घरकी कोई ऐसी लड़की ढूँढ़ सकती हो जो घर के आदमीकी तरह तुम्हारी बहूकी सहायता कर सके ? अब इन्हें खोंसे तो दिखलाई देता नहीं । यदि कोई ऐसी स्त्री मिल जाय नो सदा इनके साथ रहा करे, तो मैं निश्चिन्त हो जाऊँ। जब मैं अन्धी हुई थी, यदि उस समय शुरू शुरू में यह बात कही जाती, तो खप जाती । पर मेरी समझ में नहीं आता था कि अब मेरी आँखोंके अभाव के कारण घर गृहस्थी के काम में क्या बाधा पड़ती है । तो भी मैंने किसी प्रकारका प्रतिवाद नहीं किया और मैं चुप बैठी रही । बुझने कहा - लड़कियों की क्या कमी है ? मेरे ही जेठकी एक लड़की है । वह देखने में जैसी सुन्दर है, वैसी ही लक्ष्मी भी है। हो भी सयानी गई है। बस हम लोग यही देख रहे हैं कि कोई अच्छा वर मिल जाय तो उसका ब्याह कर दिया जाय । यदि तुम्हारे ऐसा कुलीन मिले, तो अभी व्याह हो सकता है। स्वामी चकित होकर कहा—यहाँ व्याह करनेके लिए कौन कहता है ! तुमने कहा – यदि तुम ब्याह न करोगे, तो क्या किसी भले घरकी लड़की यों ही तुम्हारे यहाँ आकर रह जायगी ? बात बहुत ठीक थी । स्वामी उसका कोई समुचित उत्तर न दे सके ।