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दृष्टि-दान
१८६.
बैठी। वह मेरे स्वामीके पैरोंकी आहट थी। मेरा कलेजा अन्दरसे धड़.. कने लगा।
स्वामी मेरे बिछोनेपर आ बैठे और मेरा हाथ पकड़कर बोलेतुम्हारे भइयाने मेरी रक्षा कर ली। मैं क्षण-भरके मोहमें पड़कर मरने जा रहा था। उस दिन जब मैं नावपर सवार हुआ था, तब मेरे हृदयपर जितना भारी बोझ था, उसे अन्तर्यामी ही जानते हैं । जिस समय मैं नदीके बीच आँधीमें पड़ गया, उस समय मुझे प्राणोंका भी भय हुआ । पर साथ ही मैं यह भी सोचने लगा कि यदि मैं इस समय नदीमें डूब जाऊँ, तो मेरा उद्धार हो जाय। मथुरगंज पहुँचकर मैंने सुना कि उससे एक दिन पहले ही तुम्हारे भाईके साथ हेमांगिनीका ब्याह हो गया है । मैं नहीं कह सकता कि उस समय मैं कैसी लज्जा
और कैसे अानन्दसे लौटकर नावपर आया । इन दो ही चार दिनोंमें मैंने यह बात बहुत ही अच्छी तरह समझ ली है कि तुम्हें छोड़कर मुझे कोई सुख नहीं मिल सकता । तुम मेरी देवी हो। ___ मैंने हँसकर कहा-नहीं, मुझे देवी बनानेकी जरूरत नहीं। मैं तुम्हारे घरकी स्त्री हूँ मैं एक साधारण नारी मात्र हूँ।
स्वामीने कहा-तुम्हें भी मेरा एक अनुरोध मानना पड़ेगा । अब आगे तुम मुझे कभी देवता कहकर अप्रतिभ न करना । __ दूसरे दिन हमारे यहाँ खूब धूमधामसे जलसा हुआ। अब हेमांगिनी मेरे स्वामीके साथ खाते-पीते, उठते-बैठते, सबेरे-सन्ध्या अनेक. प्रकारके उपहास करने लगी। उसके हँसी-मजाककी कोई सीमा ही न रह गई । पर किसीने कभी इस बातका कोई जिक्र तक नहीं किया कि मेरे स्वामी कहाँ गये थे और वहाँ क्या हुआ था।
समात