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रवीन्द्र-कथाकुञ्ज
संयत कण्ठ-स्वरकी कोमलता कम न हो जाय, यथासाध्य तीव्रताके साथ मृण्मयीको डाँटने डपटने लगी । अपूर्व बाबू अपनी सारी गंभीरता
और गुरुताको एकत्र करके चुपचाप पेटके पास लटकती हुई घड़ीकी चैन हिलाने लगे। मृण्मयीने देखा कि राखाल टससे मस नहीं होता, तब वह उसकी पीठपर तड़ाकसे एक धौल जमाकर और कन्याका घूघट खोलकर आँधीके समान तेजीके साथ बाहर हो गई । इसपर दासी क्रुद्ध होकर गरजने लगी और राखाल बहनका घूघट खुल जानेके कारण खिलखिलाकर हँसने लगा। उसकी पीठपर जो जोरकी धौल पड़ी थी, उसे उसने बेजा नहीं समझा ; क्योंकि वह एक मामूली घटना थी। इस प्रकारका लेन-देन उन दोनोंके बीच बराबर चला ही करता था । पहले मृण्मयीके बाल इतने बड़े हो गये थे कि पीठके बीचोंबीच तक आ जाते थे। एक दिन राखालने चुपचाप पीछेकी अोरसे पहुँचकर उनपर कैंची चला दी। इस पर मृण्मयीको बड़ा क्रोध आया। उसने राखालके हाथसे कैंची छीन ली और अपने शेष बालोंको भी स्वयं ही बड़ी निर्दयताके साथ काट डाला। उसके काले धुंघराले बालोंके गुच्छे डालसे गिरे हुए काले अंगूरोंकी तरह पृथ्वीपर बिखर गये । उन दोनों के बीच इसी प्रकारकी शासनप्रणाली प्रचलित थी। ___पूर्वोक्त घटनाके उपरान्त वह नीरव परीक्षा-सभा अधिक समय तक न टिक सकी। पिण्डाकार कन्या किसी तरह फिरसे दीर्घाकार होकर दासीके साथ अन्दर चली गई। अपूर्व बाबू भी बड़ी ही गंभीरताके साथ अपनी विरल और सूक्ष्म मूंछोंपर ताव देते हुए उठ खड़े हुए। द्वारके निकट पहुँचकर उन्होंने देखा कि वानिश किये हुए नये जूते गायब हैं । बहुत कुछ ढूँढ खोज करने पर भी उनका पता न लगा।
इस पर घरके सभी आदमी चिढ़ उठे और अपराधीके नामपर लगातार निन्दा और गालियोंकी वर्षा करने लगे। जब जूतोंके पानेकी