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अध्यापक
___ गंगाके तटपर एक निर्जन कमरेमें मैं चित्त होकर लेट जाता, दोपहरके समय विश्व-प्रेमकी बातें सोचता सोचता गहरी नींदमें सो जाता ; और एकदम अपराह्नको पाँच बजे जाग उठता । उसके उपरान्त शरीर और मन कुछ शिथिल हो जाया करता । किसी प्रकार अपना चित्त बहलाने और समय बितानेके लिए मैं बागके पिछवाड़ेवाला सड़क के किनारे लकड़ीकी एक बेंचपर चुपचाप बैठकर बैलगाड़ियों और आते जाते लोगोंको देखा करता । जब बहुत ही असह्य हो जाता, तब स्टेशन चला जाता । वहाँ टेलिग्राफका काँटा कट कट शब्द किया करता ; टिकटके लिए घंटा बजा करता ; बहुतसे लोग अाकर एकत्र हो जाते । तब वह हजार पैरोंवाला और लाल लाल आँखोंवाला लोहेका सरीसृप फुफकारता हुअा अाया करता और जोर जोरसे चिल्लाकर चल दिया करता । आदमियोंकी धकापेल होती । मुझे थोड़ी देरके लिए कुछ कौतुक-सा जान पड़ता। लौटकर घर चला आता और भोजन करता । कोई संगी साथी तो था ही नहीं, इसलिए फिर जल्दी ही सो जाया करता । उधर सबेरे उठनेकी भी कोई जल्दी नहीं रहती ; इसलिए प्रायः आठ नौ बजे तक बिछौने पर ही पड़ा रहा करता।
शरीर मिट्टी हो गया ; परन्तु ढूँढ़ने पर भी विश्व-प्रेमका कोई पता ठिकाना नहीं मिला। कभी अकेला रहा नहीं था, इसलिए बिना संगी साथीके गंगाका किनारा भी शून्य श्मशानके समान जान पड़ने लगा। अमूल्य भी ऐसा गधा निकला कि उसने एक दिनके लिए भी कभी अपनी प्रतिज्ञा नहीं तोड़ी। ____ इससे पहले जब मैं कलकत्ते में रहता था, तब सोचा करता था कि मैं वट-वृत्तकी विपुल छायामें पैर पसारकर बैठा करूँगा ! मेरे पैरों के पाससे होकर कलनादिनी स्रोतस्विनी अपने इच्छानुसार बहा करेगी । बीचमें