Book Title: Ravindra Katha Kunj
Author(s): Nathuram Premi, Ramchandra Varma
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 163
________________ दृष्टि-दान मैं मन ही मन सोच रही थी कि जब राजा राजामें युद्ध होता है,. तब सबसे अधिक विपत्ति धासके लिए ही होती है । स्वामीके साथ झगड़ा हुआ भइयाका, और दोनों ओरसे आघात होने लगे केवल मुझपर । मैंने यह भी सोचा कि जब भइया मुझे दान ही कर चुके . हैं, तो फिर मेरे सम्बन्धके कर्तव्यके लिए इतना झगड़ा बखेड़ा क्यों करते हैं । मेरा सुख-दुःख और रोग-आरोग्य सभी कुछ तो मेरे स्वामीका ही है। ___ उस दिन मेरी आँखोंकी चिकित्साकी सामान्य बात पर ही मेरे भइया और स्वामीमें कुछ मनमुटाव हो गया। एक तो यों ही पहलेसे ही मेरी आँखोंसे पानी गिरा करता था, उस दिनसे मेरी आँखोंसे और भी अधिक पानी जाने लगा। पर उसका वास्तविक कारण : उस समय न तो मेरे स्वामीकी ही समझमें आया और न भइयाकी ही समझमें। ___ जब मेरे स्वामी कालिज चले गये, तब तीसरे पहर के समय भइया अचानक अपने साथ एक डाक्टरको लिये हुए आ पहुँचे । डाक्टरने अच्छी तरह आँखोंकी परीक्षा करके कहा-यदि अभीसे पूरी पूरी सावधानी न की जायगी, तो आगे चलकर इस पीड़ाके बहुत अधिक बढ़ जानेकी सम्भावना है। इतना कहकर डाक्टरने कुछ दवाएं लिख दी और भइयाने आदमीको वह दवाएँ लाने के लिए भेन दिया। जब डाक्टर चले गये, तब मैंने भइयासे कहा-भइया, मैं आपके . पैरों पड़ती हूँ, इस समय मेरी जो चिकित्सा हो रही है, उसमें श्राफ किसी प्रकारकी बाधा मत दीजिए। ___ मैं बाल्यावस्थासे ही भइयासे बहुत डरा करती थी। मैं जो अपने मुँहसे उनसे यह बात कह सकी, यह मेरे लिए एक बहुत ही आश्चर्यकी घटना थी । पर मैं बहुत अच्छी तरह समझती थी कि मेरे स्वामीकी चोरी

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