Book Title: Ravindra Katha Kunj
Author(s): Nathuram Premi, Ramchandra Varma
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 167
________________ दृष्टि-दान रखना पड़ता है और स्त्री होकर बालकके पिताको भुलाए रखना पड़ता है । स्त्रियों के लिए इतनी अधिक छलनाकी आवश्यकता होती है ! १६ १ इस छलनाका फल यही हुआ कि मैंने धन्धी होनेसे पहले अपने भइया और स्वामीका मिलन देख लिया । भइयाने समझा कि चोरीसे चिकित्सा करने के कारण यह दुर्घटना हुई और स्वामीने समझा कि यदि शुरू मेरे भइया के परामर्श के अनुसार काम किया जाता तो अच्छा होता । यही सोचकर दोनों अन्दर ही अन्दर क्षमाप्रार्थी होकर एक दूसरे के बहुत निकटवर्ती हो गये। मेरे स्वामी अब भइया से परामर्श लेने लग गये और भइया भी विनीत भावसे सभी विषयों में मेरे स्वामीको ही सम्मतिपर निर्भर रहने लगे । अन्तमें दोनोंही के परामर्शसे एक दिन एक अँगरेज डाक्टरने कर मेरी बाई आँख में नश्तर लगाया | दुर्बल आँख यह आघात न सह सकी और उसमें जो कुछ थोड़ी बहुत दीप्ति बच रही थी, वह भी ज.ती रही । इसके उपरान्त दाहिनी आँख भी थोड़े दिनों में धीरे धीरे अन्धकारमें आवृत हो गई । बाल्यावस्था में शुभ दृष्टि के X दिन जो चन्दनचर्चित तरुण मूर्ति मेरी घाँखों के सामने पहले पहल प्रकाशित हुई थी, उसके ऊपर मानो सदाके लिए परदा पड़ गया | २ एक दिन स्वामीने मेरी शय्याके पास आकर कहा- - अब मैं तुम्हारे सामने व्यर्थ अपनी बड़ाई नहीं करना चाहता । वास्तवमें तुम्हारी आँखें मैं ही नष्ट की हैं। मैंने देखा कि उनका गला रुँध गया है । मैंने दोनों हामी X बंगालकी एक विवाहकी रस्म | 99

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