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रवीन्द्र-कथाकुञ्ज
• समय मैं स्वयं भी मृत्युके बहुत कुछ समीप पहुंच गई थी। परन्तु जिसके भाग्यमें दुःख भोगना बदा है, वह यदि मर जाय, तो फिर काम कैसे चले ? वह दुःख कौन भोगे ? जो दीपक जलनेके लिए तैयार किया जाता है. उसका तेल नहीं घटता । रात-भर जल कर ही वह बुझता है। ___मैं बच तो गई, पर चाहे शरीरकी दुर्बलतासे हो, चाहे मनके - खेदसे हो अथवा और किसी कारणसे हो, मेरी आँखोंमें पीड़ा उत्पन्न हो गई।
उस समय मेरे पति डाक्टरी पढ़ रहे थे । नई नई शिक्षाके उत्साहके कारण चिकित्सा करनेका सुयोग पाकर वे बहुत प्रसन्न हुए । उन्होंने स्वयं ही मेरी चिकित्सा करना प्रारम्भ किया।
भइया उस समय कालिजमें पढ़ रहे थे और बी० एल० की परीक्षा देनेवाले थे । एक दिन उन्होंने आकर मेरे स्वामीसे कहा-भला यह तुम क्या कर रहे हो! तुम तो कुसुम की दोनों आँखें नष्ट किये डालते हो। किसी अच्छे डाक्टरको बुलाकर दिखलायो । ___ मेरे स्वामी ने कहा-भला अच्छा डाक्टर आकर और कौन-सी नई चिकित्सा करेगा ? जो दवाएँ आदि हैं, वह तो सब मुझे मालूम ही हैं।
भइयाने कुछ बिगड़कर कहा-तब तो फिर तुममें और तुम्हारे कालिजके बड़े साहबमें कोई भेद ही न रह गया। ___ मेरे स्वामीने कहा-तुम कानून पढ़ते हो; डाक्टरीका हाल क्या जानो ! जब तुम अपना विवाह करोगे और तुम्हारी स्त्रीकी सम्पत्तिके सम्बन्धमें कोई मुकद्दमा खड़ा होगा, तब क्या तुम मेरे परामर्श के अनुसार चलोगे?