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दुर्बुद्धि
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मुझे अपना पैतृक मकान छोड़ देना पड़ा। क्यों और कैसे, सो खुलासा करके न बतलाऊँगा - केवल आभास ही दूंगा । मैं एक कसबेकी सरकारी अस्पतालका डाक्टर हूँ। पुलिसके थानेके सामने मेरा मकान है। यमराजके साथ मेरी जितनी मित्रता है दारोगा साहबके साथ भी उससे कम नहीं । जिस तरह मणिसे वलयकी (कड़ेकी) और वलयसे मणिकी शोभा बढ़ती है उसी तरह मेरी मध्यस्थतासे दारोगा साहबकी और दारोगा साहबकी मध्यस्थतासे मेरी आर्थिक श्रीवृद्धि होती थी। .
इन सब कारणोंसे वर्तमान नियमोंके जानकार दारोगा ललितचक्रवर्तीके साथ मेरी गहरी मित्रता थी। उनके किसी सम्बन्धीकी एक सयानी कन्या थी। दारोगा साहब उसके साथ विवाह करने के लिए मुझसे सदा ही अनुरोध किया करते और इस तरह उन्होंने मुझे तंग
ॐ मणिना वलयं वलयेन मणिमणिना वलयेन विभाति करः ।