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रवीन्द्र-कथाकुञ्ज
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उन्होंने बहुत ही प्रसन्न होकर सम्मति देने में क्षण-भरका भी बिलम्ब नहीं किया।
___ अब मोती बाबू और अन्नपूर्णा दोनों मिलकर यह सोचने लगे कि विवाह कब हो । परन्तु मोती बाबू स्वभावसे ही गोपनताप्रिय और सावधान रहनेवाले श्रादमी थे। उन्होंने सब बातें बहुत ही गुप्त रक्खीं । ___ चारु किसी प्रकार रोककर रक्खी ही नहीं जा सकती थी । वह बीच बीचमें मराठोंकी घुड़सवार सेनाकी तरह तारापदके पढ़नेके कमरेमें जा पहुँचती। वह कभी राग, कभी अनुराग और कभी विराग-द्वारा उसकी पाठचर्याकी एकान्त शान्ति सहसा भंग कर दिया करती। इसी लिए आजकल इस निर्लिप्त और मुक्तस्वभाव ब्राह्मण बालकके चित्तमें बीच बीचमें क्षण भरके लिए विद्युत्के स्पन्दनकी भांति एक अपूर्व चंचलताका संचार हो जाया करता । जिस व्यक्तिका लघु-भार चित्त सदा अटूट अव्याहत भावसे काल-स्रोतकी तरंगोंमें उत. राता हुश्रा केवल सामनेकी ओर ही बहा चला जाता था, वह आजकल रह रहकर अन्यमनस्क हो उठता और विचित्र दिवा-स्वप्नके जालमें जकड़ जाता । वह दिन दिन भर पढ़ना लिखना छोड़कर मोती बाबूकी लाइब्रेरीमें पहुंचकर तसवीरोंवाली पुस्तकोंके पन्ने उलटा करता। उन चित्रोंके संयोगसे जिस कल्पित जगतकी सृष्टि होती, वह उसके पहलेवाले जगतसे बिलकुल अलग और रंगीन होता। चारुका अद्भुत पाचरण देखकर अब वह पहलेकी तरह हँस नहीं सकता। वह जब कभी किसी प्रकारकी दुष्टता करती, तब उसे मारने पीटनेका विचार अब उसके मनमें उठता ही नहीं। अपना यह निगूढ परिवर्तन और श्राबद्ध आसक्त भाव उसे एक नवीन स्वप्नके समान जान पड़ने लगा।