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रवीन्द्र-कथाकुञ्ज
हो रहता । कोई कह नहीं सकता था कि सहसा किस लिए और किस ओरसे आक्रमण होगा । इसके उपरान्त प्रबल आँधी आती; के उपरान्त प्रचुर अश्रु-जलकी वर्षा होती; और उसके उपरान्त स्निग्ध शान्ति आ विराजती ।
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इसी प्रकार प्रायः दो वर्ष बीत गये । इतने लम्बे समय तक arrपदको कभी कोई पकड़कर नहीं रख सका था । जान पड़ता है कि पढ़ने लिखने में उसका मन एक अपूर्व श्राकर्षण से बद्ध हो चुका था । जान पड़ता है कि अवस्था बढ़ने के साथ ही साथ उसकी प्रकृतिमें भी परिवर्तन होना प्रारम्भ हो गया था, स्थायी रूपसे बैठकर संसारकी सुख- स्वच्छन्दताका भोग करनेकी ओर उसका मन लग गया था । जान पड़ता है, उसकी सहपाठिका बालिकाका हमेशा के उपद्रवोंसे चंचल रहनेवाला सौन्दर्य अलक्षित भावसे उसके हृदयपर अपना बन्धन दृढ़
कर रहा था ।
उधर चारु भी अब ग्यारह बरससे ऊपरकी हो गई । मोती बाबूने ढूँढ़ ढाँढ़कर अपनी लड़कीके विवाह के लिए दो तीन अच्छे अच्छे वर देखे । और जब देखा कि कन्या के विवाहका समय समीप आ रहा है, तब उन्होंने उसका पढ़ना लिखना और बाहर आना जाना बन्द कर दिया । यह आकस्मिक अवरोध देखकर चारुने घरमें बहुत बड़ा बखेड़ा खड़ा कर दिया ।
इसपर एक दिन अन्नपूर्णाने मोती बाबूको बुलाकर कहा- तुम arके लिए इतनी अधिक चिन्ता और ढूँढ खोज क्यों कर रहे हो ? तारापद तो बहुत अच्छा लड़का है और तुम्हारी लड़कीको भी वह पसन्द है । अन्नपूर्णाकी यह बात सुनकर मोती बाबूने बहुत अधिक आश्चर्य