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अतिथि
प्रकट किया । उन्होंने कहा-भला यह कैसे हो सकता है ? तारापदके. कुल-शीलका कुछ भी पता नहीं। मेरी एक ही एक लड़की ठहरी । मैं उसे किसी अच्छे घरमें देना चाहता हूँ।
एक दिन रायडाँगाके बाबूके यहाँसे कुछ लोग लड़कीको देखनेके लिए आये । चारुको कपड़े लत्ते पहनाकर बाहर लानेकी चेष्टा की गई ; परन्तु वह जाकर अपने सोनेके कमरे में दरवाजा बन्द करके चुपचाप बैठ गई, किसी प्रकार बाहर निकली ही नहीं ! मोती बाबूने कमरेके बाहरसे बहुत अनुनय विनय करके डाँट डपटकर बाहर निकालना चाहा ; पर फल कुछ भी नहीं हुआ। अन्तमें उन्हें बाहर आकर रायडाँगेसे आये हुए आदमियोंसे झूठ बोलना पड़ा। उन्हें कहना पड़ा कि अचानक लड़कीकी तबीयत बहुत खराब हो गई है, इसलिए आज हम लड़की नहीं दिखला सकते । उन लोगोंने सोचा कि लड़कीमें शायद कोई दोष है ; इसी लिए यह चालाकी खेली है और यह बहाना किया है।
तब मोती बाबू सोचने लगे कि तारापद देखने सुननेमें सभी बातोंमें बहुत अच्छा लड़का है। इसे मैं अपने घरमें भी रख सकूँगा। उस दशामें मुझे अपनी एक मात्र लड़की पराए घर न भेजनी पड़ेगी। उन्होंने यह भी सोचा कि इस अशान्त अबाध्य लड़कीकी यह उद्दण्डता हमारी स्नेहपूर्ण दृष्टि में चाहे कितनी ही क्षम्य क्यों न जान पड़ती हो, पर ससुराल में इसकी ये सब बातें कोई न सहेगा।
तब पति-पत्नीने बहुत कुछ सोच विचारकर तारापदके घर उसके कुलके सम्बन्धकी सब बातों का पता लगानेके लिए एक आदमी भेजा। वहाँसे समाचार आया कि वंश तो अच्छा है, पर गरीब है । तब मोती बाबूने लड़केकी माँ और भाइयोंके पास विवाहका प्रस्ताव भेजा ।