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दुर्बुद्धि
अन्तमें मामला ठीक हो गया और हरनाथको अपने लड़कीके शवसंस्कार करनेकी आज्ञा मिल गई ; परन्तु इसमें वह बिल्कुल बरबाद हो गया।
उसी दिन शामको सावित्रीने मेरे पास आकर करुणापूर्ण स्वरसे पूछा-पिताजी, आज वह बूढ़ा ब्राह्मण तुम्हारे पैरों पड़कर क्यों रोता था ? मैंने उसे धमकाकर कहा-तुझे इन बातोंसे मतलब! चल अपना काम कर ! ___ इस मामलेसे कन्या-दान करनेका मार्ग साफ हो गया । लक्ष्मीजी बड़े अच्छे मौकेपर प्रसन्न हुई। विवाहका दिन निश्चित हो गया। एक ही कन्या थी, इसलिए खूब तैयारियां की गई। घरमें कोई स्त्री नहीं थी, इसलिए पड़ोसियोंसे सहायता लेनी पड़ी। हरनाथ अपना सर्वस्व -खो चुका था, तो भी मेरा उपकार मानता था और इसलिए इस काममें मुझे जीजानसे सहायता देने लगा।
विवाह-समारंभ पूरा नहीं हो पाया । जिस दिन हल्दी चढ़ाई गई उसी दिन रात्रिको तीन बजे सावित्रीको हैजा हो गया। बहुत उपाय किये गये, परन्तु लाभ कुछ भी नहीं हुआ । अन्तमें दवाइयोंकी शीशियाँ जमीनपर पटककर मैं भागा और हरनाथके पैरों पड़कर गिड़गिड़ाकर कहने लगा-बाबा, क्षमा करो, इस पापीको क्षमा करो, सावित्री मेरी एकमात्र कन्या है । संसारमें इसे छोड़कर मेरा और कोई नहीं है। __हरनाथ मेरे कथनका कुछ भी मतलब नहीं समझा; वह घबड़ाकर बोला-डाक्टर साहब, आप यह क्या करते हैं ! मैं आपके उपकारसे दबा हुआ हूँ; मेरे पैरोंको मत छुप्रो ! _ मैंने कहा-बाबा, तुम निरपराध थे, तो भी मैंने तुम्हारा सर्वनाश किया है। मेरी कन्या उसी पापसे मर रही है।
यह कहकर मैं सब लोगोंके सामने चिल्लाचिल्लाकर कहने लगा