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श्रतिथि
इधर बहुत दिनों से वह अनेक प्रकारकी मण्डलियों और सम्प्रदायों आदिके साथ रहता आया था, इसलिए अनेक प्रकारकी मनोरंजन करनेकी विद्याएँ उसे अच्छी तरह आ गई थीं । कभी किसी प्रकारकी चिन्तासे श्राच्छन्न न रहने के कारण उसके निर्मल स्मृति- पटपर सभी चीजें बहुत ही सहज भावसे मुद्रित हो जाती थीं । अनेक प्रकार के भजन, कीर्तन, कथाएँ और अभिनय यादि उसे कण्ठ थे । बाबू मोतीलाल अपनी बहुत दिनोंकी प्रथाके अनुसार एक दिन संध्या समय अपनी स्त्री और कन्याको रामायण पढ़कर सुना रहे थे । कुश और लवका प्रकरण था । उस समय तारापद अपने उत्साहको न रोक सका और नावकी छतपरसे नीचे उतरकर बोला- आप पुस्तक रख दीजिए। मैं कुश और लवसम्बन्धी कुछ गीत थाप लोगोंको सुनाता हूँ । आप लोग जरा ध्यानपूर्वक सुनिए ।
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इतना कहकर उसने लव और कुशके सम्बन्धकी कथाके गीत प्रारम्भ कर दिये । वंशीके समान अपने मीठे स्वरसे वह धाराप्रवाहकी भाँति अनेक प्रकारके गीत सुनाने लगा । सब मल्लाह आदि भी द्वारके पास गीत सुनने के लिए था खड़े हुए। उस नदी तटके संध्या समयके आकाशमें हास्य, करुणा और संगीतसे एक अपूर्व स्रोत प्रवाहित होने लगा । दोनों ओर के निस्तब्ध तदोंकी भूमि कुतूहलपूर्ण हो उठी । वहाँ पाससे होकर जो नावें जा रही थीं, उनके आरोही भी थोड़ी देर के लिए उत्कण्ठित होकर उसी श्रोर कान लगाकर सुनने लगे । जब गीत और कथा समाप्त हो गई, तब सब लोग व्यथित चित्तसे ठण्डी सांस लेकर सोचने लगे कि यह कथा और यह गीत इतनी जल्दी क्यों समाप्त हो गया !
सजलनयना अन्नपूर्णा की यह इच्छा होने लगी कि इस बालकको मैं अपनी गोद में बैठाकर और कलेजेसे लगाकर उसका मस्तक सूँघूँ ।