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रवीन्द्र-कथाकुञ्ज
ब्राह्मण बालकने उत्तर दिया-मेरा नाम तारापद है।
गोरे रंगका वह बालक देखने में बहुत सुन्दर था। उसकी बड़ी बड़ी आँखों और हँसते हुए होठोंसे बहुत ही ललित सुकुमारता प्रकट होती थी । वह केवल एक मैली धोती पहने था। उसका शेष सारा शरीर नंगा था। उसके सब अङ्ग बहुत ही सुडौल थे । ऐसा जान पड़ता था कि किसी बहुत अच्छे कारीगरने बहुत यनसे उसके सब अङ्ग बहुत ध्यानपूर्वक गढ़े हैं । मानो वह पूर्वजन्ममें तापस-बालक था और निर्मल तपस्याके प्रभावसे उसके शरीर मेंसे सारे शारीरिक विकार बहुत अधिक परिमाणमें निकल जानेसे एक सम्मार्जित ब्रह्मण्यश्री उसमेंसे प्रस्फुटित हो उठी है।
मोती बाबूने बहुत ही स्नेहपूर्वक कहा-बेटा, तुम जाकर स्नान कर आयो । तुम्हारा भोजन यहीं होगा !
तारापदने कहा-अच्छा आप भोजन बनाइए।
इतना कहकर वह बालक बिना किसी प्रकारके संकोचके रसोई बनाने में सहायता देने लगा। बाबू मोतीलालका नौकर हिन्दुस्तानी था । मछली चीरने और काटने आदिके काममें वह उतना अधिक निपुण नहीं था। तारापदने वह काम उसके हाथसे ले लिया और थोड़ी ही देरमें उसे अच्छी तरह सम्पन्न भी कर दिया । इसके सिवा उसने एक दो तरकारियाँ भी ऐसी अच्छी तरह पका दी जिससे जान पड़ा कि वह इन कामों में अच्छा अभ्यस्त है । जब रसोई पक चुकी, तब तारापदने नदीमें स्नान करके अपनी छोटी-सी गठरी खोलकर उसमेंसे एक सफेद धोती निकालकर पहनी, काठकी एक छोटी कंघी निकालकर अपने सिरके बड़े बड़े बाल माथे परसे हटाकर पीछे गर्दनकी ओर डाल दिये
और स्वच्छ यज्ञोपवीत धारण किये हुए वह नावमें बाबू मोतीलालके पास जा पहुंचा।