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अतिथि
मोती बाबू उसे नावके अन्दर ले गये । वहाँ मोती बाबूकी स्त्री और नौ वर्षकी उनकी कन्या दोनों बैठी हुई थीं। इस सुन्दर बालकको देखकर मोती बाबूकी स्त्री अन्नपूर्णाका हृदय प्रेमसे भर गया । वह मन ही मन सोचने लगी-आहा! यह किसका बालक है, कहाँसे पा रहा है-इसे छोड़कर भला इसकी मा कैसे सुखसे रहती होगी-उससे कैसे रहा जाता होगा !
थोड़ी देर में मोती बाबू और इस छोटे बालकके लिए पास ही पास दो आसन बिछ गये। बालक बहुत ही कम भोजन कर रहा है, यह देखकर अन्नपूर्णाने मनमें सोचा कि यह कुछ संकोच कर रहा है। उसने उससे बहुत अनुरोध किया कि थोड़ा यह खा लो, थोड़ा वह खा लो । पर जब उसका पेट भर गया, तब फिर उसने कोई अनुरोध नहीं माना। सब लोगोंने देखा कि यह बालक सब काम अपनी ही इच्छासे करता है और ऐसे सहज करता है कि किसीको यह नहीं जान पड़ता कि वह जिद करता है या अपनी ही बात रखना चाहता है। उसके व्यवहारमें कहीं लज्जाका नाम भी नहीं दिखाई देता । ___ जब सब लोग भोजन कर चुके, तब अन्नपूर्णाने उसे अपने पास बैठाकर बहुत-सी बातें पूछी और उसका विस्तृत इतिहास जानना चाहा ; पर कुछ बहुत अधिक पता नहीं चला। बस यही पता चला कि यह बालक सात आठ वर्षकी अवस्थामें ही अपनी इच्छासे घर छोड़कर भाग पाया है।
अन्नपूर्णाने पूछा-तुम्हारी माँ नहीं हैं ? तारापदने कहा-हैं। अन्नपूर्णा ने फिर पूछा-क्या वे तुम्हें नहीं चाहती ?
तारापदको मानो उसका यह प्रश्न बहुत ही अद्भुत जान पड़ा। वह जोरसे हँस पड़ा और बोला-क्यों, चाहती क्यों नहीं !