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दुबुद्धि
भाग किसानके पास भेज दिया ; परन्तु उसने उसका स्पर्श भी न किया । ____ जल्दी जल्दी आहारसे छुट्टी पाकर मैं मालगुजारके रोगीको देखने के लिए फिर घरसे बाहर हुआ। संध्याको वापस आकर देखा तो उस किसानकी दशा खराब हो रही है। वह बातका उत्तर नहीं दे सकता,. मुँहकी ओर टकटकी लगाकर देखता है। उस समय नदी, गाँव, थाना, मेघाच्छन्न आकाश और कीचड़मय पृथ्वी श्रादि सब चीजें उसे स्वमके जैसी मालूम होती थीं । बारबार पूछताछ करने पर मालूम हुआ कि उससे एक सिपाहीने पाकर पूछा कि 'तेरे पास कुछ रुपये हैं या नहीं'
और इसके उत्तरमें उसने कह दिया कि 'मैं बहुत ही गरीब हूँ, मेरे पास कुछ भी नहीं है ।' सिपाही तब यह कहकर चला गया, तो कुछ नहीं हो सकता, यहीं पड़े रहना पड़ेगा।' ___ मैंने इस प्रकारके दृश्य सैकड़ों ही बार देखे थे, पर उनका मेरे चित्तपर कुछ भी असर नहीं पड़ा था ; मगर उस दिन उस किसानकी दशा मुझसे नहीं देखी गई-मेरा हृदय विदीर्ण होने लगा। सावित्रीके करु. णा-गद्गद कण्ठका स्वर जहाँ तहाँसे सुनाई पड़ने लगा और उस कन्यावियोगी वाक्यहीन किसानका अपरिमित दुःख मेरी छातीको चीरकर बाहर होने लगा।
दारोगा साहब बेतकी कुर्सीपर बैठे हुए आनन्दसे हुक्का पी रहे थे। उनके पूर्वोक्त सम्बन्धी महाशय भी वहीं बैठे हुए गप्पें हाँक रहे थे जो कि अपनी कन्याका विवाह मेरे साथ करना चाहते थे। वे इस समय इसी कामके लिए वहाँ पधारे थे। मैं झपटता हुआ पहुँचा और दारोगा साहबसे चिल्लाकर बोला-"आप मनुय्य हैं या राक्षस ?" इसके साथ ही मैंने अपने सारे दिनकी कमाईके रुपये उनके सामने फेंक दिये और कहा- "रुपया चाहिए तो ये ले लो, जब मरोगे तब इन्हें साथ ले