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रवीन्द्र-कथाकुञ्ज
विच्छेद और मुकद्दमोंके सलाह मशविरे छोड़कर और कुछ नजर ही नहीं आता। यहाँके किसी मकानकी ओर देखकर यह खयाल तो कभी आता ही नहीं है कि शायद इस समय भी इस मकान के किसी कोनेमें शैतान छिपा हुआ बैठा है और अपने काले काले अंडे से रहा है !
मैं बहुधा रास्तों पर निकलकर पथिकोंके मुखकी चेष्टाएँ और चलनेके ढंग बहुत ही बारीकीके साथ देखा करता। उस समय भावभङ्गीसे जिन लोगोंपर जरा-सा भी सन्देह हुआ है, उनका पीछा किया है ; उनके नाम धाम और इतिहासका पता लगाया है और अन्तमें बड़ी ही निराशाके साथ यह अाविष्कार किया है कि वे निष्कलङ्क भले श्रादमी हैं। यहाँ तक कि उनके नाते-रिश्तेके लोग भी उनके विषयमें किसी प्रकारका गुरुतर अपवाद प्रकाशित नहीं करते । पथिकों में जो सबसे अधिक पाखण्डी मालूम हुआ है, यहाँ तक कि जिसे देखकर यह अच्छी तरह निश्चित-सा हो गया है कि यह अभी अभी कोई बड़ा भारी दुष्कार्य करके आया है, उसके विषयमें भी अनुसन्धान करनेसे यही पता चला है कि वह एक मामूली स्कूल का असिस्टेण्ट मास्टर है
और लड़कोंको छुट्टी देकर घर जा रहा है। यदि ये सब लोग अन्य किसी देशमें उत्पन्न हुए होते, तो इसमें सन्देह नहीं कि विख्यात चोर या डाकू बन सकते । परन्तु यथोचित जीवनी शक्ति और यथेष्ट पौरुषके अभावसे ये बेचारे इस अभागे देश में केवल मास्टरी करके और बुढापेमें पेन्शन लेकर ही मर जाते हैं। बहुत बड़ी चेष्टा और अनुसन्धानके उपरान्त उस मास्टरकी निरीहताके प्रति मुझे जैसी गहरी अश्रद्धा उत्पन्न हुई, वैसी किसी अतिशय क्षुद्र कटोरे लोटेके चुरानेवालेपर भी कभी नहीं हुई !
अन्तमें एक दिन सन्ध्याके समय मैंने अपने मकान के निकटवर्ती गैसपोस्टके नीचे एक ऐसा श्रादमी देखा जो बिना जरूरत उत्सुकताके