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समाप्ति
भोजन समाप्त हो चुकने पर बड़ी तेज हवा चली और मूसलधार पानी बरसने लगा।
बहनने कहा-भैया, आज यहीं रह जाओ। भैयाने कहा-नहीं, घर जाऊँगा ; काम है ।
बहनोईने कहा-रातको तुम्हें ऐसा कौन-सा काम करना है। यदि यहाँ एक रात ठहर जानोगे तो ऐसा वहाँ कौन है जिसके आगे तुम्हें कैफियत देनी पड़ेगी ! तुम्हें चिन्ता ही किस बातकी है ?
बहुत कुछ दबाव पड़ने पर, इच्छा न रहने पर भी, अपूर्व बाबू रातको वहीं रहनेके लिए राजी हो गये।
बहनने कहा-भैया, तुम बहुत थके हुए दिखाई देते हो। इसलिए अब देर मत करो, सोनेके लिए चलो।
अपूर्व भी यही चाहते थे। उन्हें उत्तर प्रत्युत्तर देना अच्छा नहीं लग रहा था । वे सोचते थे कि अन्धकारमें शय्यातलपर अकेले जा पड़नेसे सारी झंझटोंसे छुट्टी मिल जायगी ।
सोनेके कमरेके द्वारपर आकर देखा कि भीतर अन्धकार हो रहा है । बहनने कहा-हवासे चिराग बुझ गया है। क्या दूसरा चिराग जला लाऊँ ?
अपूर्वने कहा नहीं जरूरत नहीं है । मैं रातको चिराग बुझाकर ही सोता हूँ।
बहनके चले जानेपर अपूर्व अन्धकारमें सावधानीके साथ पलंगकी ओर बढ़े।
उन्होंने पलंगपर चढ़नेके लिए पैर बढ़ाया ही था कि इतनेमें जेवरकी झन्कार सुन पड़ी और एक अतिशय कोमल बाहुपाशने उन्हें