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रवीन्द्र-कथाकुञ्ज
वह अपने बापकी बहुत ही लाड़ली लड़की है, इसी कारण उसका इतना दुर्दान्त प्रताप है । यद्यपि उसकी माता इस विषयमें सर्वदा अपने पतिकी शिकायत ही किया करती है ; परन्तु यह सोचकर कि बाप उसे बहुत ही चाहता है और जब कभी वह पास रहता है तब मृण्मयीके आँसू उसे बहुत ही कष्टकर होते हैं, वह अपने प्रवासी पतिका स्मरण करती हुई उसके परोक्षमें भी मृण्मयीको कभी सताती नहीं है।
मृण्मयी देखने में काली है। उसके छोटे छोटे धुंघराले बाल पीठ तक बिखरे रहते हैं । उसके मुखका भाव ठीक लड़कोंके सदृश है । उसके बड़े बड़े काले नेत्रों में न लज्जा है, न भय है और न हाव-भाव-लीलाका लेश । शरीर दीर्घ, परिपुष्ट, स्वस्थ और सबल है, परन्तु उसे देखकर किसीके मन में यह प्रश्न नहीं उठता कि उसकी उमर कम है या ज्यादा। यदि उठता तो लोग उसके माता-पिताकी अवश्य निन्दा करते । यदि किसी दिन इस ग्रामके विदेशी जमींदारकी नाव घाटपर श्राकर लग जाती है तो लोग घबराकर श्रादरके साथ उठ खड़े होते हैं और स्त्रियोंकी मुख-रंगभूमिके नासाग्रभाग तक यवनिका पड़ जाती है; परन्तु मृण्मयी किसीके नंगे बच्चेको गोद में लिये हुए न जाने कहाँसे आ जाती है और अदब-कायदेकी जरा भी परवा न करती हुई बिलकुल सामने जाकर खड़ी हो जाती है। इसके बाद वह व्याधाओं से रहित देशके हरिणशिशुओं की तरह निडर होकर बड़े ही कुतूहलसे टकटकी लगाकर देखती
और अन्तमें अपने बालक संगियों के पास जाकर इस नवागत प्राणीके श्राचार-विचारोंका खूब विस्तारके साथ वर्णन करती है । ____ हमारे अपूर्व बाबू इससे पहले और भी दो चार बार इस बन्धन विहीन बालिकाको देख चुके हैं और उसके विषयमें बहुत कुछ विचार भी कर चुके हैं। पृथ्वीमें ऐसे मुख तो अनेक हैं जो आँखोंपर चढ़ जाते हैं ; परन्तु कोई कोई ऐसे भी हैं कि बिना कुछ कहे सुने ही आँखोंको