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रवीन्द्र-कथाकुञ्ज
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नवेन्दुको मन ही मन क्रोध भी श्राता था और लज्जा भी होती थी। किन्तु वे सालियोंको छोड़ नहीं सकते थे। खासकर उनकी बड़ी साली बहुत ही सुन्दरी थी। उसमें मधु भी था और काँटा भी। उसकी मादकता
और जलन दोनों ही मनको पागल कर देती थीं । जले हुए पंखोंवाला पतंग क्रोधसे भनभनाता भी है और अन्ध अबोधके समान चारों ओर घूमता भी है। ____ अन्तमें सालियोंके संसर्गके प्रबल मोहमें पड़कर नवेन्दु बाबू इस बातसे बिलकुल इन्कार करने लगे कि वे साहब लोगोंके परम भक्त हैं । वे जिस दिन बड़े साहबको सलाम करने जाते, उस दिन सालियोंसे कह जाते कि सुरेन्द्रनाथ बनर्जीका व्याख्यान सुनने जा रहे हैं और जब दारजिलिंगसे लौटे हुए मेजो साहबके स्वागत के लिए स्टेशनपर जाते, तब कह जाते कि मेजो ( मँझले ) मामासे मिलने जा रहा हूँ।
साहब और साली, इन दो नौकानोंपर पैर रखकर हतभागे नवेन्दुबाबू बहुत ही मुश्किल में पड़ गये। सालियोंने मन ही मन कहा कि तुम्हारी दूसरी नौकाको नष्ट किये बिना हम चैन नहीं लेनेकी । ___ यह खबर बड़ी तेजीके साथ फैल गई कि महारानीके अागासी जन्म दिनके अवसरपर नवेन्दुबाबू खिताब-स्वर्ग-लोककी पहली सोढ़ी 'रायबहादुर' पदवीपर पदार्पण करेंगे। किन्तु वह वे बारे इतने बड़े सम्मानलाभका आनन्दपूर्ण समाचार अपनी सालियोंके सामने प्रकट नहीं कर लके । केवल एक दिन शरत्-शुक्ल पक्षकी सन्ध्याको सर्वनाशो चन्द्रमाके प्रकाशमें उनसे अपने चित्तका आवेग नहीं रोका गया और उन्होंने अपनी स्त्री को यह शुभ संवाद सुना ही डाला । दूसरे दिन उनकी स्त्री अपनी बड़ी बहनके यहाँ गई और आँसू भरकर अपना असन्तोष प्रकट करने लगी। लावण्यलेखाने कहा-यह तो बहुत अच्छा हुआ ! राय