Book Title: Ratnakarandak Shravakachar
Author(s): Samantbhadracharya, Mannulal Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
View full book text
________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
31
२,३
२
m
| विस्तृत विषय सूची । विषय श्लोक संख्या पृष्ठ विषय
श्लोक संख्या पृष्ठ | प्रथम-सम्यग्दर्शन अधिकार
मद त्याग
२६ ५४ मंगलाचरण
संपत्ति की असारता
२७ धर्म का स्वरूप
षड् अनायतन सम्यग्दर्शन का लक्षण
सम्यक्त्व की उत्पत्ति और भेद आप्त का स्वरूप
पाँच लब्धियां श्वेताम्बर मत समालोचना
सम्यक्त्व का स्वरूप-भेद सच्चे देव के नाम
७ १४ सम्यग्दृष्टि के आठ गुण वीतरागी ही आप्त
सम्यग्दर्शन की महानता २८ ६५ सच्चे शास्त्र का लक्षण
पुण्य और पाप का फल २९ ६६ सच्चे गुरु का लक्षण
वन्दनीय कौन
३० ६६ निःशंकित अंग का लक्षण ११ २१
सम्यक्त्व की श्रेष्ठता निःकांक्षित अंग का लक्षण १२ २४
सम्यक्त्व की महिमा
३२ ६९ निर्विचिकित्सा का लक्षण
मोहीमुनि से निर्मोहीश्रावक श्रेष्ठ ३३ ७१ अमूढदृष्टि का लक्षण
सम्यक्त्व-सर्वोत्कृष्ट उपकारक ३४ ७३ उपगूहन का लक्षण
सम्यक्त्व से कुगति निषेध ३५ ७३ स्थितिकरण का लक्षण
१६ ३१
सम्यक्त्व से सुगति ३६ से ४१ ७४ वात्सल्य का लक्षण
हितोपदेश
७८ प्रभावना का लक्षण
परिशिष्ट १. सम्यक्त्व की आराधना ७९ अंगों के पालन में प्रसिद्ध १९,२० | द्वितीय-सम्यग्ज्ञान अधिकार सदोष सम्यक्त्व की असमर्थता २१
सम्यग्ज्ञान का लक्षण लोकमूढ़ता का लक्षण
२२ ३७ प्रथमानुयोग
४३ ८४ पवित्रता का वर्णन
२२ ३८
करणानुयोग स्नान की आवश्यकता
चरणानुयोग देवमूढ़ता का लक्षण
२३ ४३
द्रव्यानुयोग क्षेत्रपाल-पद्मावती पूजन निषेध ४७
परिशिष्ट २. सम्यग्ज्ञान की आराधना ८६ गुरुमूढ़ता का लक्षण
२४ ४८ अष्टमद
२५ ४८
Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com