Book Title: Prameyratnamala
Author(s): Shrimallaghu Anantvirya, Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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प्रमेयरत्नमालायां
८३-१५३
तृतीय समुद्देश परोक्ष का लक्षण परोक्ष के भेद स्मृति का लक्षण प्रत्यभिज्ञान का लक्षण ऊह प्रमाण अनुमान प्रमाण हेतु का लक्षण अविनाभाव का लक्षण सहभाव क्रमभाव साध्य का लक्षण असिद्ध विशेषण की सार्थकता इष्ट और अबाधित विशेषणों के ग्रहण का कारण पक्ष विकल्प सिद्ध धर्मी में सत्ता और असत्ता दोनों ही साध्य हैं प्रमाणसिद्ध और उभयसिद्ध धर्मी में साध्यधर्म से विशिष्टता व्याप्तिकाल में धर्म ही साध्य होता है गम्यमान भी पक्ष का प्रयोग पक्ष और हेतु दोनों ही अनुमान के अंग हैं उदाहरण साध्य की जानकारी का अंग नहीं है उपनय और निगमन अनुमान के अंग नहीं हैं समर्थन ही हेतु का यथार्थ रूप है बालकों की व्युत्पत्ति के लिए उदाहरणादि हैं अन्वय और व्यतिरेक दृष्टान्त उपनय निगमन स्वार्थ और परार्थानुमान उपलब्धि और अनुपलब्धि हेतु अस्तित्व साध्य होने पर अविरुद्धोपलब्धि के छह भेद कारण के व्यापार के आश्रित ही कार्य का व्यापार सहचर हेतु का स्वभाव, कार्य और कारण हेतु में अन्तर्भाव नहीं होता है
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