Book Title: Prameyratnamala
Author(s): Shrimallaghu Anantvirya, Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
View full book text
________________
षष्ठः समुद्देशः
२०१ अतस्मिन्नननुभूत इत्यर्थः । शेषं सुगमम् । प्रत्यभिज्ञानाभासमाह
सदृशे तदेवेदं तस्मिन्नेव तेन सदृशं यमलकवदित्यादि 'प्रत्यभिज्ञानाभासम् ॥ ९ ॥
द्विविधं प्रत्यभिज्ञानाभासमुपदर्शितम्-एकत्वनिबन्धनं सादृश्यनिबन्धनं चेति । तत्रैकत्वे सादृश्यासभासः सादृश्ये चैकत्वावभासस्तदाभासमिति । तर्काभासमाह
____ असम्बद्ध तज्ज्ञानं तर्काभासम् ॥ १० ॥ यावांस्तत्पुत्रः स श्याम इति यथा । तज्ज्ञानमिति व्याप्तिलक्षणसम्बन्धज्ञानमित्यर्थः। इदानीमनुमानाभासमाह
इदमनुमानाभासम् ॥ ११ ॥
है, इस प्रकार का ज्ञान स्मरणाभास है। जैसे जिनदत्त में, वह देवदत्त है, ऐसा स्मरण ॥८॥
अतस्मिन् का अननुभूत है। शेष अर्थ सुगम है । प्रत्यभिज्ञानाभास के विषय में कहते हैं
सूत्रार्थ-सदृश वस्तु में 'यह वही है, ऐसा कहना, उसी पदार्थ में, यह उसके सदृश है, ऐसा कहना। जैसे एक साथ जन्मे हुए दो बालकों में विपरीत ज्ञान हो जाना, इत्यादि प्रत्यभिज्ञानाभास है ॥९॥
दो प्रकार का प्रत्यभिज्ञान बतलाया गया है-एकत्वनिमितक और सादृश्यनिमित्तक । इनमें से एकत्व में सादृश्य का अवभास और सादृश्य में एकत्व का अवभास प्रत्यभिज्ञानाभास है।
विशेष-सादृश्य प्रत्यभिज्ञानाभास, जैसे-जो देवदत्त के समान है, उसमें देवदत्त ही है, ऐसा मानना ।
तर्काभास के विषय में कहते हैं
सूत्रार्थ-अविनाभाव सम्बन्ध से रहित पदार्थ में अविनाभाव सम्बन्ध का ज्ञान करना तर्काभास है ॥१०॥
जैसे-उसका जो भी पुत्र होगा, वह श्याम होगा । सूत्र कथित तज्ज्ञान पद का अर्थ व्याप्ति लक्षण सम्बन्ध का ज्ञान है।
अब अनुमानाभास को कहते हैं । सूत्रार्थ-यह अनुमानाभास है ।।११।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org