Book Title: Prameyratnamala
Author(s): Shrimallaghu Anantvirya, Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 246
________________ षष्ठः समुद्देशः २०३ एतेषां क्रमेणोदाहरणमाहतत्र प्रत्यक्षबाधितो यथा-अनुष्णोऽग्निद्रव्यत्वाज्जलवत् ॥१६॥ स्पार्शनप्रत्यक्षेण ह्य ष्णस्पर्शात्मकोऽग्निरनुभूयते । अनुमानबाधितमाह अपरिणामी शब्दः कृतकत्वाद् घटवत् ॥ १७ ॥ अत्र पक्षोऽपरिणामी शब्दः कृतकत्वादित्यनेन बाध्यते । आगमबाधितमाह प्रेत्यासुखप्रदो धर्मः पुरुषाश्रितत्वादधर्मवत् ॥ १८ ॥ आगमे हि पुरुषाश्रितत्वाविशेषेऽपि परलोके धर्मस्य सुखहेतुत्वमुक्तम् । लोकबाधितमाह शुचि नरशिरःकपालं प्राण्यङ्गत्वाच्छंखशुक्तिवत् ॥ १९ ॥ लोके हि प्राण्यङ्गत्वेऽपि कस्यचिच्छुचित्वमशुचित्वं च । तत्र नरकपालादी प्रत्यक्षादि बाधित पक्षभासों के क्रम से उदाहरण कहते हैं सूत्रार्थ-उनमें से प्रत्यक्ष बाधित पक्षाभास का उदाहरण। जैसेअग्नि उष्णता रहित हैक्योंकि वह द्रव्य है, जैसे-जल ॥१६॥ स्पार्शन प्रत्यक्ष से उष्ण स्पर्श वाली अग्नि का अनुभव होता है। अनुमानबाधित पक्षाभास कहते हैंसूत्रार्थ-शब्द अपरिणामी है; क्योंकि कृतक है, घड़े के समान ॥१७॥ यहाँ पर अपरिणामी शब्द कृतकपने से बाधित है। ( शब्द परिणामी है; क्योंकि उसमें अर्थक्रिया पायी जाती है, कृतक होने के कारण, जैसेघड़ा इस अनुमान से शब्द अपरिणामी है यह पक्ष बाधित होता है। आगमबाधित के विषय में कहते हैं सूत्रार्थ-धर्म परलोक में दुःख देने वाला होता है; क्योंकि वह पुरुष के आश्रित है। जैसे-अधर्म । पुरुष का आश्रितपना समान होने पर भी आगम में धर्म सुख का हेतु कहा गया है ।।१८।। लोक बाधित के विषय में कहते हैं सूत्रार्थ-मनुष्य के सिर का कपाल पवित्र है; क्योंकि वह प्राणी का अंग है। जैसे शंख और सीप ।१९ । लोक में प्राणी का अंग होने पर भी किसी वस्तु को पवित्र माना जाता है, किसी को अपवित्र माना जाता है। इनमें से नर-कपालादि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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