Book Title: Prameyratnamala
Author(s): Shrimallaghu Anantvirya, Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

View full book text
Previous | Next

Page 255
________________ २१२ । प्रमेयरत्नमालायां तदेवोदाहरतिअग्निमानयं देशो धूमवत्त्वात्, यदित्थं तदित्थं यथा महानस इति ४७ इत्यवयवत्रयप्रयोगे सतीत्यर्थः । चतुरवयवप्रयोगे तदाभासत्वमाह धूमवांश्चायमिति वा ॥ ४८ ।। अवयवविपर्ययेऽपि तत्त्वमाह तस्मादग्निमान् धूमवांश्चायम् ॥ ४९ ॥ कथमवयवविपर्यये प्रयोगाभास इत्यारेकायामाह स्पष्टतया प्रकृतप्रतिपत्तेरयोगात् ॥५०॥ इदानीमागमाभासमाह रागद्वेषमोहाक्रान्तपुरुषवचनाज्जातमागमाभासम् ॥ ५१ ॥ भास है ॥४६॥ इसी बालप्रयोगाभास का उदाहरण देते हैं सूत्रार्थ-यह प्रदेश अग्नि वाला है; क्योंकि धूम वाला है। जो धूम वाला होता है, वह अग्नि वाला भी होता भी होता है। जैसेरसोईघर ।।४७॥ यहाँ पर तीन ही अवयवों का प्रयोग किया गया है। चार अवयवों का प्रयोग करने पर बालप्रयोगाभास को कहते हैंसूत्रार्थ-अथवा यह भी धूमवान् है ॥४८॥ विशेष-ऊपर के तीन अवयवों के प्रयोग के साथ उपनय का उपयोग करना, निगमन का प्रयोग न करना बालप्रयोगाभास है । अवयवों के विपरीत प्रयोग करने पर भी बालप्रयोगाभासपन होता है। सत्रार्थ-इसलिए यह अग्नि वाला है और यह भी धूमवाला है ।।४९।। विशेष—यहाँ निगमन का प्रयोग पहिले कर दिया, उपनय का बाद में प्रयोग किया। अवयव के विपरीत प्रयोग करने पर प्रयोगाभास कैसे कहा इस सूत्रार्थ में आशंका के होने पर आचार्य कहते हैं कि इसका विस्तार से निरूपण सूत्रार्थ में है क्योंकि स्पष्ट रूप से प्रकृत पदार्थ का ज्ञान नहीं होता है ।।५०॥ अब आगमाभास के विषय में कहते हैंसूत्रार्थ-राग, द्वेष और मोह से आक्रान्त पुरुष के वचनों से उत्पन्न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280