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षष्ठः समुद्देशः
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मिह युक्त्या प्रतिपत्तव्यम् । तत्र मूल नयौ द्वौ द्रव्यार्थिक- पर्यायार्थिकभेदात् । तत्र द्रव्यार्थिकस्त्रेधा नैगमसङ्ग्रहव्यवहारभेदात् ।
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पर्यायार्थिकदचतुर्धा - ऋजुसूत्र
शब्दसमभिरूढैवम्भूतभेदात् ।
अन्योन्यगुण प्रधानभूतभेदाभेदप्ररूपणो नंगमः । नैकं गमो नैगम इति निरुक्तेः । सर्वथा भेदवादस्तदाभासः ।
प्रतिपक्षसव्यपेक्षः सन्मात्रग्राही सङग्रहः । ब्रह्मवादस्तदाभासः ।
में प्रसिद्ध नयों का स्वरूप है, वह यहाँ विचारणीय है, उसे युक्ति से जान लेना चाहिये। उनमें से मूल नय दो हैं- द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक । इनमें से द्रव्यार्थिक नय तीन प्रकार का है - १. नेगम, २. संग्रह और ३. व्यवहार । पर्यायार्थिक नय चार प्रकार का है - १. ऋजुसूत्र, २. शब्द ३. समभिरूढ और ४ एवंभूत ।
वस्तु में विद्यमान धर्मों के भेद और अभेद को परस्पर गौण और प्रधान करके निरूपण करना नैगम नय है । यह नय केवल एक ही धर्म को ग्रहण नहीं करता है । 'नैकं गमो नैगम' यह इसको निरुक्ति है। सर्वथा भेद का कथन नैगमाभास है ।
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विशेष - वस्तुगत का विद्यमान धर्मों के भेद और अभेद को परस्पर गौण और प्रधान करके निरूपण करना नैगमनय है। जैसे जीव का गुण सुख है । यहाँ पर जीव अप्रधान है, क्योंकि विशेषण है, सुख प्रधान है क्योंकि विशेष्य है । सुखी जीव - यहाँ जीव की प्रधानता है; क्योंकि जीव विशेष्य है । सुख की अप्रधानता है; क्योंकि सुख विशेषण है । अनिष्पन्न अर्थ के संकल्प मात्र को ग्रहण करने वाला नैगम नय है। निगम संकल्प को कहते हैं, वहाँ उत्पन्न हुआ अथवा वह जिसका प्रयोजन है, उसे नैगम कहते हैं । जैसे कोई पुरुष कुठार लेकर जा रहा है। आप किसलिये जा रहे हैं, ऐसा पूछे जाने पर कहता है-प्रस्थ लाने के लिए । यद्यपि प्रस्थ पर्याय सन्निहित नहीं है, किन्तु प्रस्थ पर्याय की निष्पत्ति के लिये संकल्प मात्र करने पर प्रस्थ का व्यवहार हुआ है । भूत, भावि और वर्तमान काल के भेद से नैगमनय तीन प्रकार का होता है ।
प्रतिपक्ष की अपेक्षा सहित सत् मात्र को ग्रहण करने वाला संग्रहनय है । ब्रह्मवाद संग्रहनयाभास है ।
संग्रह नय है ।
विशेष – केवल सामान्य धर्म का ग्रहण कराने वाला इसके दो भेद हैं- १. महासंग्रह और २. अवान्तर संग्रह धर्मों पर उदासीन होकर लक्ष्य न देता हुआ केवल सत् रूप शुद्ध द्रव्य को
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