Book Title: Prameyratnamala
Author(s): Shrimallaghu Anantvirya, Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 253
________________ प्रमेयरत्नमालायां अपौरुषेयः शब्दोऽमूर्त्तत्वादिन्द्रियसुखपरमाणुघटवत् ॥ ४१ ॥ इन्द्रियसुखमसिद्धसाध्यम्; तस्य पौरुषेयत्वात् । परमाणुर सिद्धसाधनम्; तस्य मूर्त्तत्वात् । घटश्चासिद्धोभयः; पौरुषेयत्वान्मूर्त्तत्वाच्च । २१० साध्यव्याप्तं साधनं दर्शनीयमिति दृष्टान्तावसरे प्रतिपादितम् तद्विपरीतदर्शनमपि तदाभासमित्याह विपरीतान्वयश्च यदपौरुषेयं तदमूर्त्तम् ॥ ४२ ॥ कुतोऽस्य तदाभासतेत्याह विद्युदादिनाऽतिप्रसंगात् ॥ ४३ ॥ तस्याप्यमूर्तताप्राप्तेरित्यर्थः । सूत्रार्थ - शब्द अपौरुषेय है; क्योंकि वह अमूर्त है । जैसे - इन्द्रियसुख, परमाणु और घट ॥ ४१ ॥ इन्द्रिय सुख ( यह दृष्टान्त ) असिद्ध साध्य है; क्योंकि वह पौरुषेय है । परमाणु यह दृष्ट असिद्ध साधन है; क्योंकि परमाणु मूर्त है, घट असिद्धोभय है; क्योंकि घट पौरुषेय भी है और मूर्त भी है । विशेष – इन्द्रियसुख में साधनत्व है, साध्यत्व नहीं है । अतः यह दृष्टान्त साध्यविकल है । परमाणुओं में साध्यत्व है, साधनत्व नहीं है, अतः यह दृष्टान्त साधनविकल है । घट में अपौरुषेय रूप साध्य और अमूर्त रूप साधन ये दोनों ही नहीं हैं । अतः यह दृष्टान्त उभयविकल है । साध्यव्याप्त साधन को दिखलाना चाहिए, यह बात अन्वय दृष्टान्त के अवसर में प्रतिपादन की गई है, उससे विपरीत व्याप्ति को दिखलाना भी अन्वयदृष्टान्ताभास है, इसके विषय में कहते हैं— सूत्रार्थ - जो अपौरुषेय होता है, वह अमूर्त होता है, यह विपरीतान्वय नाम का दृष्टान्ताभास है ॥ ४२ ॥ इसे दृष्टान्ताभासता कैसे है ? इसके विषय में कहते हैं । सूत्रार्थं - क्योंकि उसमें विद्युत् आदि से अतिप्रसंग दोष आता है ॥ ४३ ॥ विद्युत् के भी अमूर्तता की प्राप्ति होतो है; क्योंकि विद्युत् अपीरुषेय है । किन्तु अपौरुषेय होते हुए भी वह अमूर्त नहीं मूर्त है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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