Book Title: Prameyratnamala
Author(s): Shrimallaghu Anantvirya, Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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षष्ठः समुद्देशः
२०९ अपरं च भेदं प्रथमस्य दृष्टान्तीकरणद्वारेणोदाहरतियथाऽनुष्णोऽग्निद्रव्यत्वादित्यादौ किञ्चित्कर्तुमशक्यत्वात् ॥३८
अकिञ्चित्करत्वमिति शेषः ।
अयं च दोषो हेतुलक्षणविचारावसर एव न वादकाल इति व्यक्तीकुर्वन्नाहलक्षण एवासौ दोषो व्युत्पन्नप्रयोगस्य पक्षदोषेणैव दुष्टत्वात् ॥३९
दृष्टान्तोऽन्वयव्यतिरेकभेदाद् द्विविध इत्युक्तम् । तत्रान्वयदृष्टान्ताभासमाहदृष्टान्ताभासा अन्वयेऽसिद्धसाध्यसाधनोभयाः ॥ ४० ॥
साध्यं च साधनं च उभयं च साध्यसाधनोभयानि, असिद्धानि तानि येष्विति विग्रहः ।
एतानेकत्रवानुमाने दर्शयति
साध्य का दूसरा भेद जो प्रत्यक्षादिबाधित है, उसे प्रथम भेद के दृष्टान्त करने के द्वारा ही उदाहरण रूप से कहते हैं
सूत्रार्थ-अग्नि उष्ण नहीं है क्योंकि वह द्रव्य है, इत्यादि अनुमान में प्रयुक्त यह हेतु साध्य की कुछ भी सिद्धि करने में समर्थ नहीं है । ३८ ।।
अतः यह अकिञ्चित्कर हेत्वाभास है, यह कहना यहाँ शेष है।
यह अकिञ्चित्कर दोष हेतु के लक्षण का विचार करने के समय हो है, बाद के समय नहीं, इसे व्यक्त करते हुए कहते हैं
सूत्रार्थ-यह अकिञ्चित्कर हेत्वाभास रूप दोष हेतु के लक्षण व्युत्पादन काल में ही है, वाद काल में नहीं; क्योंकि व्युत्पन्न पुरुष का प्रयोग तो पक्ष के दोष से ही दूषित हो जाता है ।। ३९ ॥
दृष्टान्त अन्वय और व्यतिरेक के भेद से दो प्रकार का होता है, यह कहा जा चुका है। उनमें से अन्वय दृष्टान्ताभास को कहते हैं
सूत्रार्थ-असिद्ध साध्य, असिद्ध साधन और असिद्धोभय ये तीन दृष्टान्ताभास हैं ।। ४० ॥ - साध्यं च, साधनं च, उभयं च इन तीनों का द्वन्द्व समास करना, असिद्ध हैं साध्य, साधन और उभय जिनमें ऐसा बहुब्रीहि समास करना ।
विशेष-साध्य व्याप्त साधन जहाँ प्रदर्शित किया जाता है, वह अन्वय दृष्टान्त है। इससे विपरीत अन्वय दृष्टान्ताभास है। ____इन तीनों ही अन्वय दृष्टान्ताभासों को एक ही अनुमान में दिखलाते हैं
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