Book Title: Prameyratnamala
Author(s): Shrimallaghu Anantvirya, Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 245
________________ २०२ प्रमेयरत्नमालायां इदं वक्ष्यमाणमिति भावः । तत्र तदवयवाभासोपदर्शनेन समुदायरूपानुमानाभासमुपदर्शयितुकामः प्रथमावयवाभासमाह तत्रानिष्टादिः पक्षाभासः ॥ १२ ॥ इष्टमबाधितमित्यादि तल्लक्षणमुक्तम् । इदानीं तद्विपरीतं तदाभासमितिकथयति अनिष्टो मीमांसकस्यानित्यः शब्दः ॥ १३ ॥ असिद्धाद्विपरीतं तदाभासमाह सिद्धः श्रावणः शब्द इति ॥ १४ ॥ अबाधिताद्विपरीतं तदाभासमावेदयन् स च प्रत्यक्षादिबाधित एवेति दर्शयन्नाह बाधितः प्रत्यक्षानुमानागमलोकस्ववचनैः ॥ १५ ॥ सूत्रोक्त इदं पक्ष का अर्थ वक्ष्यमाण-आगे कहे जाने वाले ( पक्षाभासादि ) हैं। उस अनुमानाभास के अवयवभासों को बतलाने से ही समुदाय रूप अनुमानाभास का ज्ञान हो जाता है, यह दिखलाने के लिए प्रथम अवयवाभास को कहते हैं सूत्रार्थ-उनमें अनिष्ट, बाधित और सिद्ध को पक्ष कहना पक्षाभास है ।।१२।। पहले पक्ष का लक्षण इष्ट, अबाधित और असिद्ध कह आए हैं। अब उनसे विपरीत तदाभास है, इस बात को कहते हैं सूत्रार्थ-मीमांसक का कहना कि शब्द अनित्य है, अनिष्ट पक्षाभास है ॥१३॥ असिद्ध से विपरीत सिद्ध पक्षाभास को कहते हैंसत्रार्थ-शब्द श्रवणेन्द्रिय का विषय है, यह सिद्ध पक्षाभास है ॥१४॥ ( वादी और प्रतिवादी दोनों में शब्द का श्रावणत्वपना सिद्ध होने से कोई विवाद ही नहीं है)। अबाधित से विपरीत बाधिताभास को दिखलाते हुए वह बाधिताभास प्रत्यक्षादि बाधित ही है, इस बात को दिखलाते हुए कहते हैं सूत्रार्थ-बाधित पक्षाभास प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम, लोक और स्ववचनों से बाधित होता है ।।१५।। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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