Book Title: Prameyratnamala
Author(s): Shrimallaghu Anantvirya, Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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प्रमेयरत्नमालायां किञ्च-कालशब्दाभिधेयत्वमतीतानागतयोः कालयोHहणे सति भवति । तद्ग्रहणं च नाध्यक्षतस्तयोरतीन्द्रि यत्वात् । अनुमानतस्तद्ग्रहणेऽपि न साध्येन सम्बन्धस्तयोनिश्चयेतु पार्यते; प्रत्यक्षगृहीतस्यैव तत्सम्बन्धाभ्युपगमात् । न च कालाख्यं द्रव्यं मीमांसकस्यास्ति । प्रसंगसाधनाददोष इति चेन्न; परम्प्रति साध्यसाधनयोयाप्यव्यापकभावाभावात् । इदानीमपि देशान्तरे वेदकारस्याष्टकादेः सौगतादिभिरभ्युपगमात् ।
रहित हैं। क्योंकि अतीत और अनागत काल काल शब्द के वाच्य हैं । जो काल शब्द का वाच्य होता है, वह वेदार्थज्ञ से रहित होता है, जैसे कि वर्तमान काल वेदार्थज्ञ से रहित है ।।२६।।
दूसरी बात यह है कि अतीत और अनागत कालों के ग्रहण करने पर ही वे काल शब्द के वाच्य हो सकते हैं। अतीत और अनागत कालों का ग्रहण प्रत्यक्ष से तो होता नहीं है; क्योंकि वे दोनों ही अतीन्द्रिय हैं ? यदि कहा जाय कि अनुमान से उन दोनों कालों का ग्रहण होता है (जैसे कि अतीत और अनागत काल हैं;) क्योंकि वे काल हैं, जैसे-वर्तमानकाल । चूँकि मध्यवर्ती वर्तमान काल देखा जाता है, अतः उसके पहले और पीछे होने वाले अतीत और अनागत काल का भी सद्भाव सिद्ध है। इस प्रकार के अनुमान से काल का ग्रहण हो जाने पर भी उन दोनों कालों का वेदकार विवजित रूप साध्य के साथ सम्बन्ध निश्चित करना संभव नहीं है। (काल शब्द अभिधेय है, अतीत और अनागत काल होने से, वर्तमान काल के समान, इस अनुमान रूप साध्य से काल शब्दाभिधेय के साथ अतीत अनागत कालपने का सम्बन्ध निश्चित करना सम्भव नहीं है)। जो प्रत्यक्ष से गृहीत है, ऐसे साधन के ही साध्य और साधन का सम्बन्ध स्वीकार किया गया है। मीमांसक मत में काल नामक द्रव्य नहीं है। (मीमांसक मत में काल द्रव्य स्वीकार न होने से अतीत और अनागत वेद को बनाने वाले से रहित हैं; क्योंकि वे काल शब्द के वाच्य हैं, इस अनुमान में, क्योंकि वे काल शब्द के वाच्य हैं', यह साधन स्वरूप से हो न होने से यह हेतु स्वरूपासिद्ध है, यह भाव है)। प्रसंग साधन से कोई दोष नहीं है, यदि ऐसा कहो तो यह भी ठीक नहीं है। क्योंकि पर के प्रति (वेद का कर्ता है ऐसा कहने वाले के प्रति ) साध्य और साधन में (वेदकार विवजित्व और काल शब्दाभिधेयत्व में ) व्याप्य और व्यापक भाव का अभाव है । अर्थात् इस समय यदि वेद के कर्ता का ग्रहण नहीं होता
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