Book Title: Prameyratnamala
Author(s): Shrimallaghu Anantvirya, Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 232
________________ चतुर्थः समुद्देशः स्यात्कारलाञ्छित मबाध्यमनन्तधर्म सन्दोहवमितमशेषमपि प्रमेयम् । देवैः प्रमाणबलतो निरचायि यच्च संक्षिप्तमेव मुनिभिर्विवृतं मयैतत् ॥ १० ॥ इति परीक्षामुखस्य लघुवृत्ती विषयसमुद्देशश्च तुर्थः । श्लोकार्थ - स्यात् पर से लाञ्छित, अबाध्य, अनन्त धर्मों के समूह से संयुक्त समस्त प्रमेय को अकलंकदेव ने प्रमाण के बल से कहा और जिस प्रमेय को माणिक्यनन्दि देव ने संक्षेप से रचा, उसे ही मुक्त अनन्तवीर्य ने वृत्ति रूप से कहा है ॥१०॥ इस प्रकार परीक्षामुख की लघुवृत्ति में प्रमाण के विषय का कथन वाला चतुर्थ समुद्देश समाप्त हुआ । Jain Education International १८९. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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