Book Title: Prameyratnamala
Author(s): Shrimallaghu Anantvirya, Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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पञ्चमः समुद्देशः अथेदानी फलविप्रतिपत्तिनिरासार्थमाह__ अज्ञाननिवृत्तिानोपादानोपेक्षाश्च फलम् ॥१॥
द्विविधं हि फलं साक्षात्पारम्पर्येणेति । साक्षादज्ञाननिवृत्तिः पारम्पर्येण हानादिकमिति; प्रमेयनिश्चयोत्तरकालभावित्वात्तस्येति ।
तद्विविधमपि फलं प्रमाणाद्भिन्नमेवेति यौगाः। अभिन्नमेवेति सौगताः । तन्मतद्वयनिरासेन स्वमतं व्यवस्थापयितुमाह
प्रमाणादभिन्न भिन्नं च ॥ २॥ कथञ्चिदभेदसमर्थनार्थं हेतुमाह
यः प्रमिमीते स एव निवृत्ताज्ञानो जहात्यादत्त उपेक्षते चेति प्रतीतेः ॥३॥
पञ्चम समुद्देश अब ( प्रमाण के ) फल के विषय में विवाद का निराकरण करने के लिए कहते हैं
सूत्रार्थ-अज्ञान की निवृत्ति, हल, उपादान और उपेक्षा ये (प्रमाण के) फल हैं ॥१॥ - फल दो प्रकार का होता है-साक्षात्फल और पारम्पर्यफल । प्रमाण
का साक्षात् फल अज्ञान की निवृत्ति करना है, पारम्पर्यफल हान आदिक हैं। क्योंकि वह प्रमेय के निश्चय करने के उत्तरकाल में होता है। __यह दोनों ही प्रकार का फल प्रमाण से भिन्न ही है, ऐसा योग कहते हैं। प्रमाण से फल अभिन्न ही है, ऐसा बौद्ध लोग कहते हैं। इन दोनों मतों के निराकरण के साथ अपने मत को व्यवस्था करने के लिए आचार्य कहते हैं
सत्रार्थ-फल प्रमाण से कथञ्चित् अभिन्न है और कथञ्चित् भिन्न है ॥२॥
कथञ्चित् अभेद का समर्थन करने के लिए हेतु कहते हैं
सूत्रार्थ-जो ( जानने वाला) प्रमाण से पदार्थ को जानता है, उसी का अज्ञान निवृत्त होता है, वही अभिप्रेत प्रयोजन के अप्रसाधक पदार्थ
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