Book Title: Prameyratnamala
Author(s): Shrimallaghu Anantvirya, Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 228
________________ १८५ चतुर्थः समुद्देशः परिमाणं चेद् विरुद्धो हेतुः, अवान्तरपरिमाणाधिकरणत्वं ह्यव्यापकत्वमेव साधयतीति । परिमाणमात्र चेत् तत्परिमाणसामान्यमङ्गीकर्तव्यम् । तथा चाणुपरिमाणप्रतिषेधेन परिमाणसामान्याधिकरणत्वमात्मन इत्युक्तम् । तच्चानुपपन्नम्, व्यधिकरणासिद्धिप्रसङ्गात् । न हि परिमाण सामान्यमात्मनि व्यवस्थितम्, किन्तु परिमाणव्यक्तिष्वेवेति । न चावान्तरमहापरिमाणद्वयाधारतयाऽऽत्मन्यप्रतिपन्ने परिमाणमात्राधिकरणता तत्र निश्चेतु शक्या । ___ दृष्टान्तश्च साधन विकलः, आकाशस्य महापरिमाणाधिकरणस्य परिमाणमात्राधिकरणत्वायोगात् । नित्यद्रव्यत्वं च सर्वथाऽसिद्धम्, नित्यस्य क्रमाक्रमाभ्यामर्थक्रियाविरोधादिति । प्रसज्यपक्षेऽपि तुच्छाभावस्य ग्रहणोपायासम्भवात् न विशेषणत्वम् । न चागृहीतविशेषणं नाम; 'न चागृहीतविशेषणा विशेष्ये बुद्धिः' . परिमाणमात्र अभीष्ट है। यदि महापरिमाण मानें तो हेतु साध्य सम होता है । ( महापरिमाण का अर्थ यदि व्यापकपना मानो तो अनुमान इस प्रकार होगा-आत्मा व्यापक है, व्यापकपने के कारण। जैसे शब्द अनित्य है, अनित्यत्यत्व होते हुए बाह्य न्द्रिय प्रत्यक्ष के कारण। यहाँ हेतु साध्यसम है । इसी प्रकार प्रकृत में भी जानना चाहिये )। यदि अवान्तरपरिमाण मानें तो हेतु विरुद्ध होगा। अवान्तरपरिमाणाधिकरणपना अव्यापकपने को हो सिद्ध करता है। यदि परिमाणमात्र रूप कहें तो परिमाण सामान्य ही अङ्गीकार करना चाहिये । इस प्रकार से अणुपरिमाण के प्रतिषेध द्वारा आत्मा के परिमाणसामान्य का अधिकरणपना है, ऐसा कहना सिद्ध होता है, किन्तु यह ठोक नहीं है। ऐसा मानने पर तो व्यधिकरण सिद्धि का प्रसंग आ जायेगा। परिमाणसामान्य आत्मा में व्यवस्थित नहीं है, किन्तु परिमाणविशेषों में ही व्यवस्थित है। और अवान्तरपरिमाण तथा महापरिमाण इन दोनों के आधार रूप से आत्मा के अनिश्चित रहने पर परिमाणमात्र को अधिकरणता भी आत्ता में निश्चित नहीं की जा सकती है। ___ आपका आकाश रूप दृष्टान्त साध्वविकल है; क्योंकि आकाश महापरिमाण का अधिकरण है, अतः वह परिमाणमात्र का अधिकरण नहीं हो सकता है। हेतु में नित्यद्रव्यत्व रूप जो विशेष्य पद दिया है, वह नित्यद्रव्यत्व सर्वथा असिद्ध है; क्योंकि नित्य पदार्थ के क्रम और अक्रम से - अर्थक्रिया का विरोध है । प्रसज्य पक्ष को मानने पर भी तुच्छ अभाव के ग्रहग करने का उपाय सम्भव न होने से विशेषणपना नहीं बन सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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