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प्रमेयरत्नमालायां
तत्र व्यापकत्वे परेषामनुमानम् - आत्मा व्यापकः, द्रव्यत्वे सत्यमूर्त्त त्वादाकाशवदिति । तत्र यदि रूपादिलक्षणं मूर्त्तत्वं तत्प्रतिषेधोऽमूर्त्तत्वम्, तदा मनसाऽनेकान्तः । अथासर्व गतद्रव्यपरिमाणं मूर्त्तत्वम्, तन्निषेधस्तथा चेत्परम्प्रति साव्यसमो हेतुः । यच्चामरमनुमानम् - आत्मा व्यापकः, अणुपरिमाणानधिकरणत्वे सति नित्यद्रव्यत्वादाकाशवदिति ।
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तदपि न साधु साधनम् । अणुपरिमाणानधिकरणत्वमित्यत्र किमयं नञर्थः पर्युदासः प्रसज्यो वा भवेत् ? तत्राद्यपक्षे अणुपरिमाण प्रतिषेधेन महापरिमाणमवाउन्तर परिमाणं परिमाणमात्रं वा । महापरिमाणं चेत्साध्यसमो हेतुः । अवान्तर
अतः गुण हैं, क्रमभावि होने से वे पर्याय होते हैं; क्योंकि वस्तु अनेकधर्मात्मक है । मैं सुखी हूँ, मैं दुखी हूँ, में घट आदि को जानता हूँ, इस प्रकार मैं की प्रतीति से अपने देह में आत्मा सुखादि स्वभाव रूप से प्रतीत होती है, पर सम्बन्धी देहान्तर में या अन्तराल में नहीं प्रतीत होती है । व्यापकत्व की कल्पना करने पर आत्मा सब जगह दिखाई देना चाहिए और भोजनादि के व्यवहार का संकर भी हो जायगा; क्योंकि एक आत्मा का समस्त आत्माओं से सम्बन्ध हो जायगा । समस्त शरीर में सुखादि की प्रतीति से विरोध के कारण आत्मा वटकणिका मात्र भी नहीं है । चार्वाक लोग ऐसा मानते हैं कि पृथ्वी, जल, तेज, वायुरूप भूतों का समुदाय आत्मा है, किन्तु भूतों का समुदाय अचेतन है, अतः उससे चेतन की उत्पत्ति में विरोध आता है ।
आत्मा के व्यापकपने के विषय में योगों का अनुमान है-आत्मा व्यापक है; क्योंकि उसमें द्रव्यपना होने पर भी वह अमूर्त है, आकाश के समान | द्रव्यत्व होने पर अमूर्त होने के कारण, ऐसा साधन करने पर यदि रूपादिलक्षण मूर्त्तत्व है और रूपादिलक्षण का प्रतिषेध अमूर्त्तत्व है तो आपके हेतु में मन से व्यभिचार आता है । यदि कहें कि असर्वगत ( अव्यापक ) द्रव्यपरिमाण का नाम मूर्त्तत्व है और उसके निषेध को अमूर्त्तत्व कहते हैं तो आपका हेतु पर के प्रति ( जैनों के प्रति ) साध्यसम हो जाता है । और जो आपका दूसरा अनुमान है कि आत्मा व्यापक है; क्योंकि अणुपरिमाण अधिकरण वाला न होकर नित्य द्रव्य है, जैसे आकाश । यह हेतु भी ठीक नहीं है । आपने जो अणुपरिमाणानधिकरणत्व हेतु दिया है, जो यह नत्रर्थ है, वह पर्युदास रूप है या प्रसज्य रूप है ? पर्युदास रूप प्रथम पक्ष है, उसमें अणुपरिमाण के प्रतिषेध से महापरिमाण अभीष्ट है अथवा अवान्तर परिमाण ( मध्यपरिमाण ) अभीष्ट है अथवा
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