Book Title: Prameyratnamala
Author(s): Shrimallaghu Anantvirya, Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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तृतीयः समुद्देशः तद्गुणैरपकृष्टानां शब्दे सङक्रान्त्यसम्भवात् ।
यद्वा वक्तुरभावेन न स्युर्दोषा निराश्रयाः ॥३१॥ इति तदप्ययुक्तम्; पराभिप्रायापरिज्ञानात् । नास्माभिर्वक्तुरभावे वेदस्य प्रामाण्याभावः समुद्भाव्यते; किन्तु तद्वयाख्यात्तृणामतीन्द्रियार्थदर्शनादिगुणाभावे । ततो दोषाणामनपोदितत्वान्न प्रामाण्यनिश्चय इति । ततोऽपौरुषेयत्वेऽपि वेदस्य प्रामाण्य निश्चयायोगान्नानेन लक्षणस्याव्यापित्वमसम्भवितत्वं वेत्यलमतिजल्पितेन । ___ ननु शब्दार्थयोः सम्बन्धाभावादन्यापोहमात्राभिधायित्वादाप्तप्रणीतादपि शब्दास्कथं वस्तुभतार्थावगम इत्यत्राहसहजयोग्यतासङ्घतवशाद्धि शब्दादयो वस्तुप्रतिपत्तिहेतवः ॥१६॥
सहजा स्वभावभूता योग्यता शब्दार्थयोर्वाच्यवाचकशक्तिः, तस्यां सङ्केतस्त
है, क्योंकि वक्ता के गुणों से दूर किए गए पुनः शब्द में आना असम्भव है। अथवा वक्ता के अभाव से दोषों का अभाव सिद्ध होता है, क्योंकि दोष निराश्रय नहीं रह सकते ॥ ३०-३१ ॥
समाधान-यह कहना भी अयुक्त है, क्योंकि आपने जैनों के अभिप्राय को नहीं समझा है। हम जैन वक्ता के अभाव में वेद के प्रामाण्य का अभाव नहीं मानते हैं, किन्तु उस वेद के व्याख्याताओं के अतीन्द्रिय 'पदार्थों को देखने आदि गुणों का अभाव है तथा गुणों के अभाव से दोषों का निराकरण न होने से वेद के प्रामाण्य का निश्चय नहीं किया जा सकता। अतः अपौरुषेयता होने पर भी वेद की प्रमाणता का निश्चय न होने से अपौरुषेय वेद के द्वारा हमारे आगम के लक्षण में न अव्यापकत्व दोष है और न असम्भवपना है । अतः अधिक बोलने से बस।
बौद्ध-शब्द और अर्थ में सम्बन्ध का अभाव होने से अन्य शब्द अन्य के निषेध मात्र को कहने वाला है, अतः आप्त प्रणीत भी शब्द से कैसे वस्तुभूत अर्थ की जानकारी होती है ?, इसके विषय में कहते हैं
विशेष-बौद्धों का कहना है कि नाम जात्यादि योजनात्मक पदार्थ नहीं है। वाच्य वाचक रूप सम्बन्ध परतन्त्रता के कारण है, सिद्ध वस्तु में परतन्त्रता क्या है ? अतः समस्त पदार्थों का तत्त्वतः सम्बन्ध नहीं है। बौद्धों की इस प्रकार की शङ्का होने पर कहते हैं
सूत्रार्थ-सहज योग्यता के होने पर संकेत के वश से शब्दादि वस्तु का ज्ञान कराने के कारण हैं ॥ ९६ ।।
सहजा=स्वभावभूता योग्यता= शब्द और अर्थ की वाच्य-वाचक
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