Book Title: Prameyratnamala
Author(s): Shrimallaghu Anantvirya, Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 213
________________ १७० प्रमेयरत्नमालायां न हि निरन्वयविनाशे पूर्वक्षणस्य ततो मताच्छिखिनः केकायितस्येवोत्तरक्षणस्योत्पत्तिर्घटते । द्रव्यरूपेण कथञ्चिदत्यक्तरूपस्यापि सम्भवात् न सर्वथा भावानां विनाशस्वभावत्वं युक्तम् । न च द्रव्यरूपस्य ग्रहीतुमशक्यत्वादभावः; तद्ग्रहणोपायस्य प्रत्यभिज्ञानस्य बहुलमुपलम्भात् । तत्यामाण्यस्य च प्रागेवोक्तत्वात्, उत्तरकार्योत्पत्त्यन्यथानुपपत्तेश्च सिद्धत्वात् । यच्चान्यत्साधनं सत्त्वाख्यं तदपि विपक्षवत्स्वपक्षेऽपि समानत्वान्न साध्यसिद्धिनिबन्धनम् । तथाहि-सत्त्वमर्थक्रियया व्याप्तम्, अर्थक्रिया च क्रमयोगपद्याभ्याम् ते च क्षणिकान्निवर्तमाने स्वव्याप्यामर्थक्रियामादाय निवर्तेते । सा च निवर्तमाना स्वव्याप्यसत्त्वमिति नित्यस्येव क्षणिकस्यापि खरविषाणवदसत्त्वमिति न तत्र सत्त्वव्यवस्था । न च क्षणिकस्य वस्तुनः क्रमयोगपद्याभ्यामर्थक्रियाविरोधोऽसिद्धः; तस्य देशकृतस्य कालकृतस्य वा क्रमस्यासम्भवात् । अवस्थितस्यैनाश को प्राप्त होता है, किन्तु द्रव्याथिक नय की अपेक्षा पदार्थ न उत्पन्न होता है और न विनष्ट होता है, किन्तु नित्य ही रहता है ॥३७॥ इस प्रकार आगमन में कहा गया है। पूर्व क्षण का निरन्वय विनाश मानने पर पूर्व क्षण से उत्तर क्षण की उत्पत्ति घटित नहीं होती है, जिस प्रकार मरे हुए मोर से वाणी नहीं. निकल सकती है। द्रव्य रूप से कथञ्चित् अत्यक्त रूप पदार्थ के भी सम्भव होने से पदार्थों का सर्वथा विनाशस्वभावपना युक्त नहीं है। ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि द्रव्य रूप का ग्रहण करना अशक्य होने से अभाव है। द्रव्य को ग्रहण करने का उपायभूत प्रत्यभिज्ञान बहुलता से पाया जाता है। प्रत्यभिज्ञान का प्रामाण्य पहले ही कह चुके हैं। यदि द्रव्य रूप से अन्वित न हो तो उत्तर कार्य की उत्पत्ति भी न हो। इस प्रकार की अन्यथानुपपत्ति से द्रव्यरूप की सिद्धि होतो है। क्षणिकत्व की सिद्धि के लिए जो सत्त्व नामका हेतु कहा है, वह भी विपक्ष ( नित्य ) के समान स्वपक्ष ( अनित्य ) में भी समान होने से साध्य की सिद्धि में कारण नहीं है। इसी बात को स्पष्ट करते हैं सत्व अर्थक्रिया से व्याप्त है। अर्थक्रिया क्रम और यौगपद्य से व्याप्त है। वे क्रम और योगपद्य क्षणिक से निवृत्त होते हुए स्वव्याप्य अर्थक्रिया को लेकर निवृत्त होते हैं और वह अर्थक्रिया निवृत्त होती हुई स्वव्याप्य सत्त्व को लेकर निवृत्त होती है। इस प्रकार नित्य के समान क्षणिक पदार्थ का भी खरविषाण के समान असत्त्व सिद्ध है। इस प्रकार क्षणिक पक्ष में सत्त्व की व्यवस्था सिद्ध नहीं होती है । क्षणिक वस्तु का क्रम और योगपद्य से अर्थक्रिया का विरोध असिद्ध नहीं है। क्योंकि क्षणिक वस्तु के. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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