Book Title: Prameyratnamala
Author(s): Shrimallaghu Anantvirya, Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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प्रमेयरत्नमालायां
मन्तर्भावविभावना शक्या कर्तुम् । तथा हि-प्रत्यक्षकप्रमाणवादिनश्चार्वाकस्य नाध्यक्षे लैङ्गिकस्यान्तर्भावो युक्तः; तस्य तद्विलक्षणत्वात्, सामग्री-स्वरूपभेदात् ।
अथ नाप्रत्यक्षं प्रमाणमस्ति, विसंवादसम्भवात् । निश्चिताविनाभावालिङ्गाल्लिङ्गिनि ज्ञानमनुमानमित्यानुमानिकशासनम्, तत्र च स्वभावलिङ्गस्य बहुलमन्यथापि भावो दृश्यते। तथाहि-कषायरसोपेतानामामलकानामेतद्देशकालसम्बन्धिनां दर्शनेऽपि देशान्तरे कालान्तरे द्रव्यान्तरसम्बन्धे चान्यथापि दर्शनात्स्वभावहेतुर्व्यभिचार्येव, लताचूतवल्लताशिंशपादिसम्भावनाच्च । तथा कार्यलिङ्गमपि गोपाल
प्रकार की प्रमाण संख्या के नियम में प्रमाण के समस्त भेदों का अन्तर्भाव करना सम्भव नहीं है । इसी बात का खुलासा करते हैं-एक प्रत्यक्ष को ही प्रमाण मानने वाले चार्वाक के प्रत्यक्ष में अनुमान का अन्तर्भाव करना यक्त नहीं है, क्योंकि अनुमान प्रत्यक्ष ज्ञान से विलक्षण है, दोनों की सामग्री और स्वरूप में भी भेद है। प्रत्यक्ष ज्ञान की सामग्री इन्द्रियाँ हैं और उसका स्वरूप वैशद्य है। अनुमान ज्ञान की सामग्री लिङ्ग (हेतु) है और उसका स्वरूप अवैशद्य है।
चार्वाक्-अप्रत्यक्ष प्रमाण नहीं है, क्योंकि उसमें विसंवाद सम्भव है। निश्चित अविनाभावी लिङ्ग से (बौद्धमत में लिङ्ग तीन प्रकार का होता है- १. स्वभाव लिङ्ग २. कार्य लिङ्ग ३. अनुपलब्धि लिङ्ग) लिङ्गो (साध्य) का जो ज्ञान होता है, वह अनुमान कहलाता है, ऐसा अनुमानवादियों का कहना है । बौद्धों के मत में स्वभावलिङ्ग के प्रायः अन्यथाभाव (साध्य के बिना भी सद्भाव) दिखाई देता है। इसी बात को स्पष्ट करते हैं-इस देश और काल सम्बन्धी आँवलों के कसैले रस से युक्त दिखाई देने पर भी देशान्तर और कालान्तर में अन्य द्रव्य का सम्बन्ध मिलने पर अन्यथा स्वभाव भी देखा जाता है, अतः स्वभाव हेतु व्यभिचारी है। तात्पर्य यह कि दुग्धादि द्रव्य का सिंचन करने पर किसो देश और काल में आँवले मधुर रस रूप भी परिणमित हो जाते हैं, अतः स्वभाव हेतु व्यभिचारी है । 'यह वृक्ष है, आम्रपना पाए जाने से, यहाँ आम्र धर्मी है, वृक्ष है, यह साध्य है, आम्रपना हेतु है । जो जो आम होता है, वह वृक्ष होता है, यह नियम नहीं है, क्योंकि आम्रलता से व्यभिचार पाया जाता है, क्योंकि आम्र लताकार भी होता है । यह वृक्ष है, शिंशपात्व के कारण, यहाँ देशान्तर में सम्भव शिंशपा लता से व्यभिचार है। १. उत्पादकारणं प्रत्यक्षस्य इन्द्रियं सामग्री, वैशद्य स्वरूपम् । अनुमानस्य लिङ्ग
सामग्री, अवैशद्यञ्च स्वरूपम् ।
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