Book Title: Prameyratnamala
Author(s): Shrimallaghu Anantvirya, Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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प्रमेयरत्नमालायां ततः प्रत्यक्षमनुमानमिति प्रमाणद्वयमेवेति सौगतः । सोऽपि न युक्तवादी; स्मृतेरविसंवादिन्यास्तृतीयायाः प्रमाणभूतायाः सदभावात् । न च तस्या विसंवादादप्रामाण्यम्; दत्तग्रहादिविलोपापत्तः। ___ अथानुभूयमानस्य विषयस्याभावात् स्मृतेरप्रामाण्यम् ? न, तथापि अनुभूतेनार्थेन सावलम्बनत्वोपपत्तः। अन्यथा प्रत्यक्षस्याप्यनुभतार्थविषयत्वादप्रामाण्य मनिवार्य स्यात् । स्वविषयावभासनं स्मरणेऽप्यवशिष्टमिति । किञ्च-स्मृतेरप्रामाण्येऽनुमानवार्तापि दुर्लभा; तया व्याप्तेरविषयीकरणे तदुत्थानायोगादिति । तत इदं वक्तव्यम्-'स्मृतिः प्रमाणम्, अनुमानप्रामाण्यान्यथानुपपत्तरिति सैव प्रत्यक्षानुमानस्वरूपतया प्रमाणस्य द्वित्वसयानियमं विघटयतीति किं नश्चिन्तया।
चूंकि चार्वाक के प्रति अन्य प्रमाण की प्राप्ति का प्रतिपादन किया अतः प्रत्यक्ष और अनुमान दो ही प्रमाण होते हैं, ऐसा बौद्ध कहता है। वह बौद्ध भी युक्त बात कहने वाला नहीं है, क्योंकि अविसंवादिनी स्मृति के रूप में तृतीय प्रमाण का सद्भाव सिद्ध होता है। विसंवाद होने के कारण स्मृति प्रमाण नहीं है, ऐसा भी नहीं है। यदि स्मृति प्रमाण नहीं मानी जायगी तो देने और ग्रहण करने के विलोप की आपत्ति आती है। __ बौद्ध-अनुभूयमान विषय का अभाव होने से स्मृति प्रमाण नहीं है।
जैन-यह बात उचित नहीं है । अनुभूयमान विषय का अभाव मानने पर भी (स्वग्राम तडाग आदि ) अनुभूत पदार्थ के सावलम्बनता बन जाती है, अन्यथा प्रत्यक्ष के अनुभूत अर्थ का विषय होने से अप्रमाणता अनिवार्य हो जायगी । अपने विषय का जानना स्मरण में भी समान है। दूसरी बात यह है कि स्मृति को प्रमाण न मानने पर अनुमान की प्रमाणता की बात करना भी दुर्लभ हो जायगी। स्मृति से साध्य साधन सम्बन्ध रूप व्याप्ति के अविषय करने पर अर्थात् स्मरण न करने पर अनुमान के प्रामाण्य का उत्थान भी नहीं होगा ? तो यह कहना चाहिएस्मृति प्रमाण है, अन्यथा अनुमान को प्रमाणता नहीं बन सकती। वह स्मति ही प्रत्यक्ष और अनुमान रूप से दो प्रमाण होने के नियम का विघ. टन कर देती है । अतः हमें चिन्ता करने से क्या लाभ है ?
स्मृति के समान प्रत्यभिज्ञान भो बौद्धों की प्रमाण संख्या का विघटन करती ही है । प्रत्यभिज्ञान का बौद्धों के द्वारा माने गये प्रत्यक्ष और अनुमान में अन्तर्भाव नहीं होता है ।
बौद्ध-'तत्' यह स्मरण है, 'इदम्' यह प्रत्यक्ष है, इस प्रकार दो ज्ञान ही हैं । स्मरण और प्रत्यक्ष से भिन्न प्रत्यभिज्ञान नामक अन्य प्रमाण
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