Book Title: Prameyratnamala
Author(s): Shrimallaghu Anantvirya, Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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द्वितीयः समुदेशः कारणस्य च परिच्छेद्यत्वे करणादिना व्यभिचारः ॥ १०॥
करणादिकारणं परिच्छेद्यमिति तेन व्यभिचारः । न ब्रूमः कारणत्वात्परिच्छेद्यत्त्रम्, अपि तु परिच्छेद्यत्वात्कारणत्वमिति चेन्न; तथापि केशोण्डुकादिना व्यभिचारात् ।
इदानीमतीन्द्रियप्रत्यक्षं व्याचष्टेसामग्रीविशेषविश्लेषिताखिलावरणमतीन्द्रियमशेषतोमुख्यम् ॥११
सामग्री' द्रव्यक्षेत्रकालभावलक्षणा, तस्या विशेषः समग्रतालक्षणः । तेन विश्लेषितान्यखिलान्यावरणानि येन तत्तथोक्तम् । किविशिष्टम् ? अतीन्द्रियमिन्द्रियाण्यतिक्रान्तम् । पुनरपि कीदृशम् ? अशेषतः सामस्त्येन विशदम् । अशेषतो वैशये किं कारणमिति चेत् प्रतिबन्धाभावः इति ब्रूमः । तत्रापि किं कारणमिति
सूत्रार्थ-कारण को परिच्छेद्य ( ज्ञेय ) मानने पर करण आदि से व्यभिचार आता है ॥ १० ॥
करणादि ज्ञान के कारण हैं, अतः परिच्छेद्य (जेय ) हैं, इसलिए इन्द्रियादि से व्यभिचार सिद्ध है।
बौद्ध-हम लोग अर्थ को ज्ञान का कारण होने से ज्ञेय नहीं कहते हैं, बल्कि परिच्छेद्य होने से उसे ज्ञान का कारण कहते हैं।
जैन-फिर भी केशोण्डुक आदि से व्यभिचार आता है । तात्पर्य यह कि जिस व्यक्ति को सिर पर मच्छर उड़ते देखकर केशों के उड़ने का ज्ञान हो रहा है, उसके वे मच्छर ज्ञान के कारण नहीं होते हैं।
इस समय अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष के विषय में कहते हैं
सूत्रार्थ-सामग्री की विशेषता से दूर हो गये हैं समस्त आवरण जिसके, ऐसे अतीन्द्रिय और पूर्णतया विशद ज्ञान को मुख्य प्रत्यक्ष कहते हैं ॥ ११ ॥
योग द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव को प्राप्ति को सामग्री कहते हैं। उसका विशेष समग्रता लक्षण वाला है। उस सामग्री विशेष से विघटित कर दिये हैं, समस्त आवरण जिसने, ऐसा वह ज्ञान है । पुनः कैसा है ? इन्द्रियों का उल्लंघन करके प्रवृत्त हुआ है। पुनः कैसा है ? सम्पूर्ण रूप से विशद है । सम्पूर्ण रूप से विशद होने में क्या कारण है ? ऐसा पूछो तो हम कहते हैं कि विशद होने में प्रतिबन्ध का अभाव कारण है। प्रति१. कर्मक्षययोग्योत्तमसंहननोत्तमप्रदेशोत्तमकालोत्तमसम्यग्दर्शनादिपरिणपतिस्वरूपा
सामग्री।
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