Book Title: Prameyratnamala
Author(s): Shrimallaghu Anantvirya, Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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द्वितीयः समुद्देशः
अत्र प्रतिविधीयते-यत्तावदुत्तम्-'प्रत्यक्षादिप्रमाणाविषयत्वमशेषज्ञस्येति' तदयुक्तम्; तद्-ग्राहकस्यानुमानस्य सम्भवात् । तथाहि-कश्चित्पुरुषः सकलपदार्थसाक्षात्कारी, तद्ग्रहणस्वभावत्वे सति प्रक्षीणप्रतिबन्धप्रत्ययत्वात् । यथाऽपगततिमिरं लोचनं रूपसाक्षात्कारि । तद्-ग्रहणस्वभावत्वे सति प्रक्षीणप्रतिबन्ध
यहाँ पर भाट्टमत का जैन आचार्य प्रतिवाद करते हैं जो आपने कहा है कि सर्वज्ञ प्रत्यक्षादि प्रमाणों का विषय नहीं है, यह बात ठीक नहीं है, क्योंकि सर्वज्ञ का ग्राहक अनुमान सम्भव है। इसी बात को स्पष्ट करते हैं___ कोई पुरुष समस्त पदार्थों का साक्षात्कार करनेवाला है अर्थात् रूपादि से युक्त प्रतिनियत वर्तमान, सूक्ष्म, अन्तरित और दूरवर्ती समस्त पदार्थों का कोई पुरुष प्रत्यक्षद्रष्टा है; क्योंकि उन पदार्थों का ग्रहण स्वभावी होकर प्रक्षीण प्रतिबन्ध प्रत्यय (कारण) वाला है। अर्थात् उसके ज्ञान के द्वारा सभी प्रतिबन्ध क्षीण हो गए हैं। जैसे तिमिर से रहित लोचन रूप का साक्षात्कार करने वाला है। तद्ग्रहण स्वभावी होकर प्रक्षीण प्रतिबन्ध प्रत्यय वाला विवाद ग्रस्त कोई पुरुष विशेष है।
विशेष-'प्रक्षीण प्रतिबन्ध ज्ञान वाला होने से' यह कहने पर योग के द्वारा परिकल्पिक मुक्त जीव से व्यभिचार आता है, अतः कहा गया हैउन पदार्थों का ग्रहण स्वभावी होकर। यौग ( न्यायवैशेषिक ) के द्वारा परिकल्पित मुक्त जीव के प्रक्षीण प्रतिबन्ध प्रत्ययत्व है, पदार्थ ग्रहण स्वभाव नहीं है, अतः उसके निराकरण के लिए 'उन पदार्थों का ग्रहण स्वभावी होकर, ऐसा कहा है। 'उन पदार्थों का ग्रहण करना स्वभाव होने से' ऐसा कहे जाने पर काच कामलादि से युक्त नेत्र से व्यभिचार आता है, अतः 'प्रक्षीणप्रतिबन्धप्रत्ययत्वात्' ऐसा कहा है । 'यतस्तद्ग्रहणस्वभावत्वात्' इतने मात्र कहे जाने पर काच कामलादि दोष से युक्त चक्षु में तद्ग्रहण स्वभाव है, ग्रहण नहीं है, इस प्रकार भाट्ट के प्रति कहा गया। _ विग्रह इस प्रकार होगा-प्रक्षीणश्चासौ प्रतिबन्धश्च स एव प्रत्ययः कारणं यस्य स, तस्य भावस्तत्त्वम् । प्रक्षीण प्रतिबन्ध प्रत्ययत्वात् ऐसा कहने पर प्रतिबन्ध से रहित अग्नि में व्यभिचार आता है, अतः उसके निराकरण के लिए 'तद्ग्रहणस्वभावत्वे सति, ऐसा कहा गया है। अतः सब ठीक कहा गया है।
पाँच अवयव में से यौग चार, मीमांसक तीन, सांख्य दो तथा जैन
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