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प्रमेयरत्नमालायां तदेवं मतभेदेन द्वि-चित्र-चतुः पञ्चावयवरूपमनुमानं द्विप्रकारमेवेति दर्शयन्नाह
तदनुमान द्वधा ॥४८॥ तदैविध्यमेवाऽऽह
स्वार्थपरार्थभेदात् ॥४९॥ स्वपरविप्रतिपत्तिनिरासफलत्वाद् द्विविधभेवेति भावः । स्वार्थानुमानभेदं दर्शयन्नाह--
स्वार्थमुक्तलक्षणम् ॥५०॥ साधनात्साध्यविज्ञानमनुमानमिति प्रागुक्तं लक्षणं यस्य तत्तथोक्तमित्यर्थः । द्वितीयमनुमानभेदं दर्शयन्नाह__ परार्थं तु तदर्थपरामशिवचनाज्जातम् ॥५१॥
के द्वारा करना सम्भव नहीं है, अतः उनका स्वरूप भी शास्त्र में कहना ही चाहिये।
इस प्रकार मतभेद को अपेक्षा दो, तीन, चार, पाँच अवयव रूप अनु. मान दो प्रकार का ही है, इस बात को दिखलाते हुए कहते हैं
सूत्रार्थ-वह अनुमान दो प्रकार का होता है ।। ४८ ॥ उस द्विप्रकारता को ही कहते हैं
सूत्रार्थ-स्वार्थानुमान और परार्थानुमान के भेद से ( वह अनुमान ) दो प्रकार का है ॥ ४९ ॥ __ स्व और पर विषयक विवाद का निराकरण करना जिसका फल है, ऐसा अनुमान दो प्रकार का होता है, यह भाव है।
स्वार्थानुमान के भेदों को दिखलाते हुए कहते हैंसत्रार्थ-स्वार्थानुमान का लक्षण कहा जा चुका है ।। ५० ॥
साधन से साध्य का ज्ञान अनुमान है, ऐसा जो लक्षण पहले कहा जा चुका है, वह स्वार्थानुमान का स्वरूप है।
अनुमान के दूसरे भेद को दिखलाते हुए कहते हैं
सूत्रार्थ-उस स्वार्थानुमान के विषयभूत अर्थ का परामर्श करने वाले वचनों से जो ज्ञान उत्पन्न होता है, उसे परार्थानुमान कहते हैं ।। ५१ ।।
विशेष-धूम से अग्नि का ज्ञान अनुमान है, इस प्रकार अर्थ का परामर्श करने वाला जो वचन है, उस वचन रूप साधन से (परोपदेश
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