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तृतीयः समुद्देशः
यो यत्रावञ्चकः स तत्राऽऽप्तः । आप्तस्य वचनम् | आदिशब्देनाङ्गुल्यादिसंज्ञापरिग्रहः । आप्तवचनमादिर्यस्य तत्तथोक्तम् । तन्निबन्धनं यस्यार्थज्ञानस्येति । आप्तशब्दोपादानादपौरुषेयत्वव्यवच्छेदः । अर्थज्ञानमित्यनेनान्यापोहज्ञानस्याभिप्रायसूचनस्य च निरासः ।
नन्वसम्भवीदं लक्षणम्; शब्दस्य नित्यत्वेनापौरुषेयात्वादाप्तप्रणीतत्वायोगात् । तन्नित्यत्वं च तदवयवानां वर्णानां व्यापकत्वान्नित्यत्वाच्च । न च तद्वयापकत्वमसिद्धम् ; एकत्र प्रयुक्तस्य गवारादेः प्रत्यभिज्ञया देशान्तरेऽपि ग्रहणात् । स एवायं
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विशेष - 'अर्थज्ञान आगम है' यह कहने पर प्रत्यक्षादि में अतिव्याप्ति हो जायगी, अतः उसके परिहार के लिए 'वाक्य निबन्धनं' कहा है । वाक्यनिबन्धन अर्थज्ञान आगम है, ऐसा कहने पर भी अपनी इच्छा से कुछ भी बोलने वाले, ठगने वाले लोगों के वाक्य, सोए हुए तथा उन्मत्त पुरुषों के वचनों से उत्पन्न होने वाले अर्थज्ञान में लक्षण के चले जाने से अतिव्याप्ति दोष होगा । अतः आप्त विशेषण लगाया है । आप्तवचन जिसमें कारण है, ऐसा ज्ञान आगम है, ऐसा कहने पर आप्त वाक्य जिसका कर्म है, ऐसे श्रावण प्रत्यक्ष में अतिव्याप्ति दोष हो जायगा, अतः उसके निराकरण के लिए अर्थ विशेषण दिया है । आप्तवचन जिसमें कारण है ऐसा अर्थज्ञान आगम है, ऐसा कहे जाने पर परार्थानुमान में अतिव्याप्ति हो जायगी, अतः उसके परिहार के लिए आदि पद ग्रहण किया गया है ।
जो जहाँ अवञ्चक है, वह वहाँ आप्त है । आप्त का वचन आप्तवचन है । आदि शब्द से अङ्गुली आदि का संकेत ग्रहण करना चाहिए । आप्त के वचनादि जिस अर्थज्ञान के कारण हैं, वह आगम प्रमाण है आप्त शब्द के ग्रहण से अपौरुषेय रूप वेद का निराकरण किया गया है. 'अर्थज्ञान' इस पद से अन्यापोह ज्ञान का तथा अभिप्राय के सूचक शब्द सन्दर्भ का निराकरण किया गया है । ( जैसे किसी ने कहा 'घड़ा लाओ', तब जल लाने रूप अर्थ के अभिप्राय को मन में रखकर लाता है । उस समय उसके अभिप्राय की सार्थकता नहीं है, हो सकता है मँगाने वाले का तात्पर्य जल लाने से भिन्न घट से हो । )
मीमांसक - यह लक्षण असम्भव दोष से युक्त है । शब्द नित्य होने से अपौरुषेय है, अतः उसका आप्तप्रणीत होना नहीं बन सकता है । शब्दों की नित्यता उसके अवयवरूप वर्णों की व्यापकता और नित्य होने से सिद्ध है । वर्णों का व्यापकपना असिद्ध भी नहीं है । एकदेश में प्रयुक्त गकार आदि
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