Book Title: Prameyratnamala
Author(s): Shrimallaghu Anantvirya, Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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प्रमेयरत्नमालायां
इत्येवमादिशब्दश्रवणात् तथाविधानेव मरालादीनवलोक्य तथा सत्यापयति यदा तदा तत्सङ्कलनमपि प्रत्यभिज्ञानमुक्तम्; दर्शनस्मरणकारणत्वाविशेषात् । परेषां तु तत्प्रमाणान्तरमेवोपपद्यते; उपमानादौ तस्यान्तर्भावाभावात्अथोहोऽवसरप्राप्त इत्याहउपलम्भानुपलम्भनिमित्तं व्याप्तिज्ञानमूहः ॥ ७ ॥ इदमस्मिन् सत्येव भवत्यसति न भवत्येवेति च ॥ ८॥
उपलम्भः प्रमाणमात्रमत्र गृह्यते । यदि प्रत्यक्षमेवोपलम्भशब्देनोच्यते तदा साधनेषु अनुमेयेषु व्याप्तिज्ञानं न स्यात् । अथ व्याप्तिः सर्वोपसंहारेण प्रतीयते, सा कथमतीन्द्रियस्य साधनस्यातीन्द्रियेण साध्येन भवेदिति ? नवम्; प्रत्यक्षविषयष्विवानुमानविषयेष्वपि व्याप्तेरविरोधात्, तज्ज्ञानस्याप्रत्यक्षत्वाभ्युपगमात् ।
आठ पैर वाला अष्टापद होता है और सुन्दर सटा ( गर्दन के बाल ) से युक्त सिंह होता है ।। १७-१८-१९ ॥ ___इत्यादि शब्दों को सुनकर, इसी प्रकार के हंस आदि को देखकर उसी रूप में जब सत्यापित करता है, तब यह संकलन ज्ञान प्रत्यभिज्ञान कहलाता है। क्योंकि दर्शन और स्मरण रूप कारण सब जगह समान हैं। अन्य मतावलम्बियों में तो इन्हें भिन्न-भिन्न प्रमाण मानना पड़ेगा। उपमानादि में इनका अन्तर्भाव नहीं होता है ।
अब अवसर प्राप्त ऊह ( तर्क ) प्रमाण के विषय में कहते हैं
सूत्रार्थ-अन्वय और व्यतिरेक जिसमें निमित्त हैं, ऐसे व्याप्ति के ज्ञान को ऊह कहते हैं। जैसे-यह साधन रूप वस्तु इस साध्य रूप वस्तु के होने पर ही होती है और साध्य रूप वस्तु के नहीं होने पर नहीं होती है ।। ७-८॥
यहाँ पर उपलम्भ से प्रमाण सामान्य का ग्रहण करना चाहिये। यदि उपलम्भ शब्द से प्रत्यक्ष ही कहा जाता है तो अनुमान के विषयभूत ( इस प्राणी में सुख नहीं है; क्योंकि हृदय की शल्य है इस प्रकार के ) साधनों में व्याप्ति का ज्ञान नहीं हो सकेगा। यदि कहा जाय कि व्याप्ति तो सर्वदेश और सर्वकाल के उपसंहार से प्रतीत होती है, अतीन्द्रिय हो साधन और अतीन्द्रिय ही साध्य होने पर वह व्याप्ति कैसे जानो जायगी? तो ऐसा नहीं कहा जाना चाहिये। प्रत्यक्ष के विषयों के समान अनुमान के विषयों में भी व्याप्ति का कोई विरोध नहीं है। क्योंकि अनियत दिग्देश वाली व्याप्ति के ज्ञान को परोक्ष माना गया है।
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