Book Title: Prameyratnamala
Author(s): Shrimallaghu Anantvirya, Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
View full book text
________________
५८
प्रमेयरत्नमालायां
प्रत्ययत्वम् । नापि विरुद्धम्; विपरीतनिश्चिताविनाभावाभावात् । नाप्यनकान्तिकम्। देशतः सामस्त्येन वा विपक्षे वृत्त्यभावात् । विपरीतार्थोपस्थापकप्रत्यक्षागमासम्भवान्न कालात्ययापदिष्टत्वम् । नापि सत्प्रतिपक्षम्; प्रतिपक्षसाधनस्य हेतोरभावात् । ____ अथेदमस्त्येव-विवादापन्नः पुरुषो नाशेषज्ञो वक्तृत्वात्पुरुषत्वात्पाण्यादिमत्त्वाच्च; रथ्यापुरुषवदिति । नेतच्चारु; वक्तृत्वादेरसम्यग्छतुत्वात् । वक्तृत्वं हि दृष्टेष्टविरुद्धार्थवक्तृत्वं तदविरुद्धवक्तृत्वं वक्तृत्वसामान्यं त्रा; गत्यन्तराभावात् । न तावत् प्रथमः पक्षः, सिद्धसाध्यतानुषङ्गात् । नापि द्वितीयः पक्षः; विरुद्धत्वात् । तदविरुद्धवक्तृत्वं हि ज्ञानातिशयमन्तरेण नोपपद्यत इति । वक्तृत्वसामान्यमपि विपक्षाविरुद्धत्वान्न प्रकृतसाध्यसाधनायालम् , ज्ञानाप्रकर्षे वक्तृत्वापकर्षादर्शनात् ।
स्वभावत्व होकर प्रक्षीण प्रतिबन्ध प्रत्ययत्व असिद्ध नहीं है, न विरुद्ध है; क्योंकि विपरीत के साथ निश्चित अविनाभाव का अभाव है । यह हेतु अनैकान्तिक भी नहीं है, क्योंकि एकदेश से अथवा सर्वदेश से उसके विपक्ष में रहने का अभाव है। ( अग्नि उष्ण नहीं है इत्यादि के समान) विपरीत अर्थ की स्थापना करने वाले प्रत्यक्ष और आगम प्रमाण का अभाव होने से उक्त हेतु कालापदिष्ट भी नहीं है। (प्रत्यक्ष और आगम से बाधित होने के काल के अनन्तर प्रयुक्त होने के कारण कालात्ययाप. दिष्ट कहलाता है ) । सत्प्रतिपक्ष भी नहीं है। क्योंकि प्रतिपक्ष का साधन करने वाले हेतु का अभाव है।
मीमांसक-प्रतिपक्ष का साधन करने वाला हेतू यहाँ पर ही हैविवाद को प्राप्त पुरुष सर्वज्ञ नहीं है; क्योंकि वह वक्ता है, पुरुष है और हाथ आदि अङ्गों का धारक है, जैसे-गली में घूमने वाला पुरुष । ___जैन-यह बात ठीक नहीं है, क्योंकि वक्तृत्व आदि हेतु सम्यक् नहीं हैं। वक्तत्व का अर्थ प्रत्यक्ष और अनुमान के विरुद्ध वक्तापन आपके अभीष्ट है या अविरुद्ध वक्तापन; क्योंकि अन्य विकल्प सम्भव नहीं है। प्रथम पक्ष तो ठीक नहीं है; क्योंकि सिद्धसाध्यता दोष का प्रसङ्ग आता है। दूसरा पक्ष भी ठीक नहीं है; क्योंकि वह विरुद्ध हेत्वाभास रूप है। प्रत्यक्ष और अनुमान से अविरुद्ध वक्तापन ज्ञानातिशय के बिना नहीं बन सकता। वक्तृत्व सामान्य भी विपक्ष ( सर्वज्ञ ) का विरोधी न होने से असर्वज्ञत्व रूप साध्य का साधन करने में समर्थ नहीं है। क्योंकि ज्ञानातिशय होने पर वचन को हानि नहीं देखी जाती है। प्रत्युत ( ऐसा देखा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org